शहर के संस्थापक महाराजा गंगासिंह ने पर्यावरण और मरुभूमि की संस्कृति के संरक्षण के लिए शहर में ग्रीन बैल्ट बनाए थे। गर्मी के मौसम में वहां लोग सुस्ता सके और तीज पर महिलाएं और बच्चे ग्रीन बैल्ट के पेड़ों पर झूले डालकर पर्व का आनंद उठा सके। शीतला माता वाटिका के आसपास ब्लॉक एरिया में ग्रीन बैल्ट की जगह छोड़कर इसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ या पक्के निर्माण पर रोक लगाई गई थी। लेकिन कालांतर में नगर परिषद ने ग्रीन बैल्ट की जगह को खांचा भूमि बताकर बेच दिया। ई ब्लॉक, डी ब्लॉक, एफ ब्लॉक, जे ब्लॉक और इंदिरा कॉलोनी में ग्रीन बैल्ट की जगह छोड़ी गई थी। लेकिन नगर परिषद के सभापतियों ने अपने चेहतों को उनके मकानों और दुकानों के आगे इस बेशकीमती भूमि को खांचा भूमि बताकर आंवटित कर उसके पट्टे जारी कर दिए। शीतला माता वाटिका के पास आज भी इस ग्रीन बैल्ट के निशान मौजूद हैं।
अतिक्रमण लील गए फुटपाथ सड़क पर चलने की छूट केवल वाहनों को ही नहीं, पैदल चलने वाले आम आदमी को भी। वाहनों की भीड़ में आम आदमी अपना रास्ता बिना किसी बाधा के सुरक्षित तय करे इसके लिए फुटपाथ का प्रावधान किया गया। श्रीगंगानगर शहर में भी आमजन के लिए फुटपाथ बनाए गए। लेकिन नगर परिषद की अनदेखी के चलते फुटपाथ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए। हाईकोर्ट ने हाल ही जो एेतिहासिक फैसला दिया है उसमें शहर में गायब हो रहे फुटपाथों को राहगीरों के लिए बहाल करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कुछ एेसा ही फैसला पूजा कॉलोनी के वेदप्रकाश जोशी की जनहित याचिका पर दिया था। प्रशासन ने उस आदेश की पालना में शहर में अतिक्रमण हटाओ अभियान तो चला दिया। फुटपाथ की बहाली आज तक नहीं कर पाया।
यहां थे फुटपाथ ढाई दशक पहले रवीन्द्र पथ पर दुकानदारों को फुटपाथ की जगह छोडऩे का आदेश दिया गया था। लेकिन इस मार्ग पर दुकानदारों ने फुटपाथ की जगह पर कब्जा जमा लिया। बीरबल चौक से कोडा चौक तक इस मार्ग के दोनों तरफ फुटपाथ को अब दुकानदारों ने अपने हिस्से की भूमि बता कर नगर परिषद से मालिकाना हक ले लिया है। कोतवाली के सामने से गांधी चौक तक और इस चौक से लक्कड़ मंडी रोड तक दुकानों के आगे बरामदे महाराजा गंगासिंह के शासन काल में इसलिए बनवाकर दिए ताकि बरसात और गर्मी के मौसम में राहगीरों को दुकानों तक पहुंचने में कोई असुविधा नहीं हो। चार दशक पहले इन बरामदों में कोई दुकानदार अपना सामान रखता था तो उसके खिलाफ नगर पालिका कार्रवाई करती थी। पालिका परिषद में तब्दील हुई तो इन बरामदों का बेचान शुरू हो गया। अब तक सवा सौ दुकानों के आगे बरामदों को खांचाभूमि बताकर बेचा जा चुका है।