दरअसल, साइबर संसार के विस्तार की गति जिस तरह से बढ़ रही है उससे भी ज्यादा तेज गति से साइबर क्राइम बढ़ा है। साइबर ठगी का हर पांचवा मामला डिजिटल लेन-देन से जुड़ा हुआ है। डिजिटल अरेस्ट, यूपीआइ से धोखाधड़ी मामलों में ठगों की पहचान आसान नहीं है। इसमें अपराध जिसका एक सिरा कहीं एक जगह होता है तो दूसरा सिरा न जाने कहां होता है। डिजिटल अरेस्ट से धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों को देखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय की साइबर शाखा ने कम्बोडिया, म्यांमार, वियतनाम व थाईलैंड जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को इन घोटालों के गढ़ के रूप में चिह्नित किया था। इन देशों के 17 हजार वॉट्सऐप खातों को भी ब्लॉक करने का बड़ा कदम उठाया था। अपराध की दुनिया में यह अलग तरह का क्राइम न केवल पुलिस-प्रशासन, बल्कि सरकारों के सम्मुख भी बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। इसमें दो राय नहीं कि हमारे देश में लोगों में डिजिटल पेमेंट की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। इंटरनेट की सहज उपलब्धता और हर हाथ में स्मार्टफोन ने इस प्रवृत्ति को और गति दी है। लोग सब्जी-दूध और किराना स्टोर से लेकर सभी तरह के बिलों के भुगतान के लिए यूपीआइ पेमेंट कर रहे हैं। दूसरी ओर शातिर ठग यूपीआइ पेमेंट के क्यूआर कोड तक भी ऐसा बना रहे हैं जो असली को भी मात देता दिखता है। नकली यूपीआइ ऐप से क्यूआर कोड स्कैन कर व भुगतान का भी फर्जी स्क्रीनशॉट तक दिखा देते हैं। ऐसे में तकनीक के दौर में आसान होती राह के बीच तमाम तरह की सतर्कता बरतने की जरूरत है।
यह सतर्कता न केवल डिजिटल माध्यम से भुगतान करते वक्त, बल्कि अपने खातों में जमा होने वाली रकम तक पर रखनी होगी, क्योंकि इंटरनेट के इस्तेमाल से आसान हुए लेन-देन में डेटा की सुरक्षा व सतर्कता नहीं रखी गई तो साइबर ठग किसी को भी अपने जाल में फंसाने से नहीं चूकने वाले। साइबर अपराधों से निपटने के ठोस प्रयास ही ऐसे जाल को तोड़ पाएंगे।