Patrika opinion समान अधिकार और सुरक्षा की हकदार हैं महिलाएं
महिलाओं का सम्मान और उनकी सुरक्षा बेहद आवश्यक है। असल में महिलाओं की सुरक्षा सामाजिक प्रगति का बड़ा आधार है। महिला सुरक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। शिक्षा, कानून और सामाजिक सोच में बदलाव के माध्यम से इस गंभीर समस्या को समाप्त किया जा सकता है। इस मुद्दे को लेकर हर वर्ग में जागरूकता भी आवश्यक है।
महिलाओं के प्रति हिंसा की गहरी होती जड़ों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुरक्षा और प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले परिवार में ही महिलाएं सर्वाधिक असुरक्षित हैं। यह आंकड़ा सचमुच चौंकाने वाला है कि दुनिया में प्रतिदिन औसतन 140 महिलाओं – लड़कियों की हत्या उनके जीवनसाथी या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जा रही है। यह आंकड़ा समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता, कमजोर कानून व्यवस्था और महिलाओं के प्रति समाज की सोच को भी दर्शाता है। देखा जाए तो यह समस्या केवल एक समाज या देश की नहीं, बल्कि वैश्विक संकट है, जिसमें महिलाओं के बुनियादी मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी ‘फेमिसाइड इन 2023’ रिपोर्ट इसलिए भी चिंताजनक है कि महिलाओं की घर पर ही हत्या के आंकड़े कम होने की जगह बढ़ रहे हैं। वर्ष 2022 में 48,800 महिलाओं की हत्या की गई थी जबकि पिछले साल यह आंकड़ा बढ़कर 51100 पर पहुंच गया। महिलाओं के प्रति ऐसी क्रूरता अफ्रीका में सबसे ज्यादा है। अमरीका, फ्रांस और यूरोप के अन्य विकसित देशों में भी घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं का प्रतिशत 64 से 79 तक पहुंचना इस समस्या के गंभीर रूप लेने की ओर इशारा कर रहा है। यह समस्या बहुआयामी है। इसकी जिम्मेदारी किसी एक पक्ष पर डालना उचित नहीं होगा। इसके लिए कई सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत कारण जिम्मेदार माने जा सकते हैं। यूएन की रिपोर्ट इस ओर भी इशारा करती है कि आधुनिक समाज में भी पुरुषों द्वारा महिलाओं को अपनी सम्पत्ति माना जा रहा है। महिलाओं को पुरुषों के अधीन ही समझा जा रहा है। महिलाओं की स्वतंत्रता, शिक्षा, और अधिकारों को सीमित करने की पुरुषों की प्रवृत्ति इस प्रकार की हिंसा को जन्म दे रही है। एक तथ्य यह भी है कि आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भरता भी महिलाओं को घरेलू हिंसा और दुव्र्यवहार सहने को मजबूर करती है।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए दुनिया भर में कानून बने हुए हैं। इसके बावजूद महिलाओं पर अत्याचार के मामले नहीं थम रहे हैं। जाहिर है इन कानूनों का सख्ती से क्रियान्वयन नहीं हो रहा। अपराधियों को शीघ्रता से सजा नहीं हो पाती, घरेलू हिंसा बढऩे का यह भी कारण है। महिलाओं का सम्मान और उनकी सुरक्षा बेहद आवश्यक है। असल में महिलाओं की सुरक्षा सामाजिक प्रगति का बड़ा आधार है। महिला सुरक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। शिक्षा, कानून और सामाजिक सोच में बदलाव के माध्यम से इस गंभीर समस्या को समाप्त किया जा सकता है। इस मुद्दे को लेकर हर वर्ग में जागरूकता भी आवश्यक है।
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