न्यायसंगत और समावेशी बनाने में निभाई भूमिका
विजया रहाटकरअध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग स्वतंत्रता सेनानियों ने एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का सपना देखा था, जहां हर नागरिक समान और स्वतंत्र हो। यह सपना साकार करने के लिए एक मजबूत संविधान की आवश्यकता थी। संविधान सभा में प्रत्येक सदस्य ने इस पर चिंतन और मंथन किया, जिससे देश को एक सशक्त और समृद्ध […]
विजया रहाटकर
अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग स्वतंत्रता सेनानियों ने एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का सपना देखा था, जहां हर नागरिक समान और स्वतंत्र हो। यह सपना साकार करने के लिए एक मजबूत संविधान की आवश्यकता थी। संविधान सभा में प्रत्येक सदस्य ने इस पर चिंतन और मंथन किया, जिससे देश को एक सशक्त और समृद्ध संविधान मिल सके। संविधान सभा में मौजूद 15 महिला सदस्य भी इस कार्य में सक्रिय रहीं।
अम्मू स्वामीनाथन , दक्षिणायानी वेलायुधन, बेगम एजाज रसूल, दुर्गाबाई देशमुख, हंसा मेहता, कमला चौधरी, लीला रॉय, मालती चौधरी , पूर्णिमा बनर्जी, राजकुमारी अमृत कौर , रेणुका रे , सरोजिनी नायडू , सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, एनी मैस्करीन जैसी महिलाओं ने न केवल भारतीय संविधान को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि उन्होंने एक ऐसे भारत के निर्माण की दिशा भी दिखाई, जिसकी संकल्पना प्राचीन भारत के ग्रंथों में थी और जो आधुनिक चिंतन में भी समाहित थी।
अम्मू स्वामीनाथन ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए जोर दिया। दक्षिणयाणी वेलायुधन ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान में हर भारतीय को समान अवसर मिले, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या लिंग से आता हो। बेगम एजाज रसूल संविधान सभा में धर्मनिरपेक्षता के महत्त्व को मान्यता देने वाली प्रमुख आवाज थी। दुर्गाबाई देशमुख ने संविधान सभा में स्वतंत्र न्यायपालिका की वकालत की और महिलाओं के पैतृक संपत्ति के अधिकार के लिए जोर दिया। वे राज्यसभा में सदस्य की न्यूनतम उम्र को घटाने के पक्ष में थीं, उनका मानना था कि बुद्धिमत्ता उम्र पर निर्भर नहीं होती। हंसा मेहता का योगदान सर्वथा अद्वितीय था। उन्होंनेे संविधान सभा में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर भी जोर दिया था, जिसे अंतत: संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में शामिल किया गया।
संविधान सभा की एक और महिला सदस्य राजकुमारी अमृत कौर ने संविधान सभा में कहा था कि महिलाओं को विशेष अधिकार नहीं, बल्कि उन्हें समान अवसर मिलने चाहिए। उनका यह दृष्टिकोण आज भी हमें प्रेरित करता है कि हम समाज में महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करें। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने संविधान सभा में जाति और पंथ के भेदभाव को समाप्त करने की आवश्यकता को मजबूती से रखा। उनका मानना था कि भारतीय समाज का विकास तभी संभव है, जब हम सभी भेदभाव और असमानताओं को समाप्त करेंगे। उनकी बातों में एक गहरी मानवीय समझ और राष्ट्रप्रेम रहता था। संविधान शिल्पी सुचेता कृपलानी ने भारतीय राजनीति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं और भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को एक नई दिशा दी। उनका संघर्ष और समर्पण आज भी हमें प्रेरित करता है।
विजयलक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और संविधान सभा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत थीं। केरल में जन्मी एनी मैस्करीन ने भारतीय संघ में राज्यों के चुनाव और स्वायत्तता पर बल दिया था। इन महान महिला संविधान शिल्पकारों ने न केवल संविधान के निर्माण में अपना योगदान देकर इसे न्यायसंगत और समावेशी बनाया, साथ ही उन्होंने समाज के हर वर्ग के अधिकारों की भी रक्षा की।
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