हमारे संविधान का निर्माण करने वाले महान व्यक्तियों ने संविधान के रूप में हमें एक अद्भुत दस्तावेज सौंपा है – एक ऐसा दस्तावेज जो विदेशी शासन के समाप्त होने पर राष्ट्र की आशाओं, सपनों और आकांक्षाओं का प्रतीक है। हमारे संविधान की 75वीं वर्षगांठ हमारे संविधान निर्माताओं ही नहीं बल्कि उन असंख्य भारतीयों की भूमिका को पहचानने का भी स्वर्णिम अवसर है जिन्होंने स्वदेशी शासन के स्वरूप के विषय में अपनी आकांक्षाओं और विचारों को अपनी याचिकाओं और अभ्यावेदनों के माध्यम से संविधान सभा के विचार के लिए प्रस्तुत किया। हमारे पवित्र संविधान के निर्माण में ऐसे आम लोगों की भूमिका उतनी ही महत्त्वपूर्ण रही, जितनी महत्त्वपूर्ण संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में गहन विचार-विमर्श की शृंखला रही। डॉ. भीमराव अंबेडकर के यह शब्द इस पवित्र दस्तावेज के महत्त्व और सार को व्यक्त करते हैं, ‘संविधान कोई कानूनी दस्तावेज मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन दर्शन है जो वर्तमान युग की चेतना को अभिव्यक्त करता है।’
26 नवंबर की तिथि को हर वर्ष संविधान दिवस के रूप में मनाने का वर्ष 2015 में लिया गया भारत सरकार का निर्णय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहब अंबेडकर के 125वें जन्म दिवस पर उन्हें दी गई सच्ची श्रद्धांजलि थी। संविधान दिवस हमें संविधान में निहित ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आस्था और प्रतिबद्धता के पुन: स्मरण का अवसर प्रदान करता है। सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए गौरव का विषय है कि इस वर्ष संविधान दिवस के अवसर पर भारत की संसद पूरे देश के साथ मिलकर संविधान के अंगीकृत किए जाने के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव उसी केंद्रीय कक्ष में मना रही है जो साढ़े-सात दशक पहले इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी था।
हमारा संविधान दुनिया के सबसे विशाल संविधानों में से एक है। हमारे संविधान में 448 अनुच्छेद, 25 अध्याय हैं और अभी तक इसमें 100 से अधिक संशोधन किए गए हैं। यद्यपि हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने काम के क्रम में अनेक देशों के संविधान का अध्ययन किया था, फिर भी अपने संविधान के निर्माण हेतु उनके लिए प्रेरणा, मेधा और विजन का मुख्य स्रोत भारत के लोग रहे द्ग वे लोग, जिन्होंने सहस्राब्दियों तक अपने भीतर सहनशीलता और लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषण किया, संवर्धन किया, वे लोग जिन्होंने देश की विविधता पर गौरव किया तथा ‘एकम् सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ के विचार का अनुसरण करते हुए इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाया। सामंजस्य और समायोजन की भावना ने हमारे संविधान की बुनावट को एक प्रकार की लोचदार मजबूती प्रदान की। इस प्रकार, जहां एक ओर औपनिवेशिक काल के बाद के विश्व में तेजी से बदलते आंतरिक और वैश्विक परिवेश में उत्पन्न विघटनकारी शक्तियों का सामना करने में कुछ ही देशों के संविधान सफल हो सके, वहीं दूसरी ओर भारत का संविधान अपने अंगीकृत होने के बाद से निरंतर समृद्ध और सशक्त होता रहा है।
संविधान निर्माताओं द्वारा संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन को आसान या कठिन बनाए रखने में अत्यंत विवेकशील संतुलन बनाया गया। संभवत: यह अद्भुत संतुलन ही वृहद, विविधतापूर्ण एवं तेजी से बदले विश्व में भी भारतीय संविधान के प्रासंगिक बने रहने का मूलमंत्र है। इसका श्रेय डॉ. अंबेडकर की दूरदर्शिता और प्रारूपण के उनके अद्वितीय कौशल को दिया जाना चाहिए कि आज हमारे पास एक ऐसा संविधान है, जिसमें दृढ़ता एवं लचीलेपन के बीच एक आदर्श संतुलन दिखाई देता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 1973 में प्रतिपादित ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ के सिद्धांत के बावजूद, भारतीय संविधान आज भी एक पर्याप्त रूप से लचीला दस्तावेज है। इसी कारण बीते दशकों के दौरान हमारे संविधान में कई महत्त्वपूर्ण संशोधन संभव हुए, जो एक गतिशील और तेजी से विकसित होते राष्ट्र के बदलते परिवेश के सूचक हैं। हाल के कुछ संवैधानिक संशोधनों का देश के नागरिकों के सामाजिक-आर्थिक विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। ऐसे संशोधनों में नौकरियों और शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10त्न आरक्षण का उपबंध करने वाला 103वां संविधान संशोधन (2019), अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का विस्तार करने वाला 104वां संशोधन (2020), तथा लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व की गारंटी देने वाला नारी शक्ति वंदन अधिनियम (2023) के नाम से विख्यात 106वां संशोधन महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
संविधान में निहित आधुनिकता के मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए हाल के वर्षों में औपनिवेशिक काल के कानूनों को निरस्त करने और उन्हें समकालीन व अधिक प्रासंगिक विधियों से प्रतिस्थापित करने के कदम उठाए गए हैं। इनके सबसे प्रमुख उदाहरण 19वीं सदी के औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानून अर्थात् भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता हैं। भारतीय संसद ने 2023 में इन कानूनों को निरस्त कर उनके स्थान पर ऐसे कानून बनाए जो आधुनिक आपराधिक न्यायशास्त्र के अनुरूप हैं। इन तीनों कानूनों के नाम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं। भारतीय संसद ने समय की मांग को ध्यान में रखते हुए कानून बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा विधेयक 2023, मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 और उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 आदि ऐसे महत्त्वपूर्ण कानून हैं जिन्हें संसद ने 21वीं सदी के विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए पारित किया है।
भारतीय संसद संविधान के अधिदेशों को लागू करने और राष्ट्र द्वारा इस संस्था में दर्शाए गए विश्वास को बनाए रखने के लिए हमेशा से प्रयासरत रही है। जनता के संप्रभु संकल्प की अभिव्यक्ति के रूप में संसद हमारे राष्ट्र की शासकीय संरचना की संवैधानिक योजना में एक विशेष स्थान रखती है। बीते सात दशकों में होने वाले 18 आम चुनाव, राज्य विधानसभाओं के चुनाव तथा नगर निगमों एवं स्थानीय निकायों के सैकड़ों चुनाव एवं उनमें से प्रत्येक चुनाव में नागरिकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी भारतीय संविधान द्वारा स्थापित आदर्शों और सिद्धांतों की पुरजोर पुष्टि करते हैं। आज जब हम अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तो आइए हम स्वयं को पुन: उन उच्च आदर्शों के लिए समर्पित करें, जिनका गौरवशाली प्रतीक हमारे भारत का संविधान है।