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तख्त पर काबिल लोगों को ही बैठाने के पक्षधर थे गुरु नानक

प्रकाश पर्व: गुरु नानक देव जयंती पर विशेष

जयपुरNov 15, 2024 / 10:40 pm

Nitin Kumar

Guru Nanak Jayanti

Guru Nanak Jayanti

मनजीत कौर
गुरवाणी चिंतक और सिखिज्म स्कॉलर
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गुरु नानक देव महान आध्यात्मिक गुरु तथा समन्यवयकारी संत थे, जिन्होंने युगों से त्रस्त एवं पीड़ित मानवता को एक नई दृष्टि तथा चिंतन प्रदान किया। वस्तुत: उनकी दार्शनिक विचारधारा सामाजिकता से जुडक़र और भी पुष्ट हो गई। उन्होंने सामाजिक अन्याय को समाप्त कर आदर्श समाज की कल्पना को साकार करने के लिए सामाजिक वैमनस्य, रूढिय़ों-आडम्बरों तथा समस्त कुरीतियों के विरुद्ध शंखनाद किया। मानव समाज के दलित वर्गों के प्रति गुरुजी की करुणा, अन्य धर्मों के प्रति सहनशीलता तथा न्यायपूर्ण समाज के लिए उनके भावनात्मक समर्थन से उनकी गहन अन्तर्दृष्टि तथा आत्मज्ञान के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि उन्होंने हमेशा अछूूत समझे जाने वालों को अति प्रेम से गले लगाया। गुरु नानक देव ने कहा भी कि ईश्वर की रहमतें तो वहीं बरसती हैं जहां निम्न, असहाय एवं गरीबों की सार-संभाल होती है। आज के दौर में जहां जातिवाद जोरों पर है, इसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा नजर आ रहे हैं। गुरु नानक का यह संदेश ज्यादा सार्थक दिखता है जिसमें वे कहते हैं कि सबको अपनी जमात (श्रेणी) का समझना, किसी को ऊंचा अथवा नीचा न समझना, यही हमारी जाति है।
गुरु नानक के तीन सिद्धांत, जिन्हें मनीषियों ने ‘त्रिरत्न सिद्धांत’ की संज्ञा दी, आज भी प्रासंगिक हैं। ये सिद्धांत हैं: पहला – ‘किरत करो’ अर्थात मेहनत की कमाई करो, दूसरा – ‘नाम जपो’ अर्थात ईश्वर की आराधना करो और तीसरा – ‘वंड छको’ अर्थात मिल-बंाटकर खाओ। सिख पंथ के महान विद्धान कवि भाई वीर सिंघ गुरु जी के ‘त्रिरत्न सिद्धांत’ को मन-वचन-कर्म से मानने का संदेश देते हुए कहते हैं – ‘गुरु नानक देव जी जगत में आए, हम पशु थे, हमें पशु से इंसान बनाया, और फिर इंसान से देवता बना दिया। हमारा अब धर्म है कि हम धर्म की किरत करें, नाम जपें तथा मिल-बांट कर खाएं।’
लोकतंत्र के प्रबल पक्षधर गुरु नानक देव ने राजतंत्र की अपेक्षा लोकतंत्र की प्रणाली को अधिक उपयोगी बताया। राजशाही में योग्यता का अर्थ नहीं होता बल्कि वंश आधारित सत्ता मिलती है। उनका साफ कहना था कि तख्त पर वही बैठना चाहिए जो उस पर बैठने के योग्य हो। जाहिर तौर पर लोकतंत्र इस दिशा में ज्यादा प्रभावी साबित होता है क्योंकि जनता अपना प्रतिनिधि खुद तय करती है। गुरु नानक देव ने श्रद्धाविहीन लोक दिखावे के लिए किए गए आडम्बरों एवं कर्मकांडों की तुलना बंजर भूमि से करते हुए कहा कि जैसे बंजर भूमि में बोए गए बीज और उन पर की गई मेहनत व्यर्थ चली जाती है, ठीक वैसे ही बिना श्रद्धा के किए गए कर्मकांडों द्वारा मनुष्य का अमूल्य जीवन व्यर्थ चला जाता है। समाज को हर क्षेत्र से उन्नत देखने के अभिलाषी गुरु नानक देव ने आर्थिक रूप से समानता के लिए मध्यम मार्ग अपनाने की अपील की तथा करनी और कथनी की समानता पर बल देते हुए सदैव विनम्र बने रहने का पावन उपदेश दिया। मीठा बोलने तथा विनम्रता हृदय से धारण करने को समस्त गुणों का सार बताते हुए फरमान किया।
सही मायने में समूची मानवता की रहनुमाई करने वाले गुरु नानक देव एक महान क्रांतिकारी व शांत शिक्षक दोनों थे। यों कहना होगा कि उनकी शांति में भी क्रांति के बीज निहित थे। इसीलिए उनका विरोध हमेशा किसी जाति, धर्म या धर्मग्रंथ से न होकर समय के साथ-साथ इनमें प्रविष्ट हुई कुरीतियों से रहा, और खास तौर से ऐसे लोगों से भी जो स्वार्थवश मानव-मानव के बीच वैमनस्य व नफरत के बीज बोकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे थे। जर्रे-जर्रे में ईश्वर का दीदार होता है, यही उनका पावन संदेश रहा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु नानक ने पराया हक न मारने की हिदायत के साथ एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया। साथ ही समूची मानवता में परमपिता परमेश्वर की ज्योति का दीदार करना, अवगुणों का त्याग करना, आदि अनेक संदेशों के जरिए समाज को आदर्श रूप प्रदान करने के लिए उच्चतर मानव मूल्यों की स्थापना की। एक तरह से उन्होंने भारतीय संस्कृति की पुन: प्रतिष्ठा की।

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