scriptआदिवासियों को लौटाया जाए उनका गौरव, सभी करें प्रयास | The pride of the tribals should be returned, everyone should make efforts | Patrika News
ओपिनियन

आदिवासियों को लौटाया जाए उनका गौरव, सभी करें प्रयास

आदिवासियों का गौरव बढ़ाने में सभी को हर स्तर पर संवेदनशील होकर काम करने की जरूरत है। हाशिए पर रहे आदिवासी और उनके गौरव को सही जगह मिल सके, इसके लिए सभी मिलककर कार्य करें।

जयपुरNov 15, 2024 / 10:17 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. भुवनेश जैन
क्षेत्रीय निदेशक, नेहरू युवा केंद्र संगठन, पश्चिम क्षेत्र
आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों और शोषण के खिलाफ आदिवासियों को संगठित किया था। मात्र 25 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया। बिरसा मुंडा की जन्म जयंती पर भारत सरकार ने वर्ष 2021 में जनजाति गौरव दिवस मनाने की शुरुआत की थी ताकि आदिवासियों के सांस्कृतिक विरासत संरक्षण, राष्ट्रीय गौरव, वीरता और उनके अर्थव्यवस्था में अमूल्य योगदान को मान्यता दी जा सके। आजादी के बाद आदिवासियों ने अपनी कौशल क्षमता से भारत का गौरव बढ़ाया है।
गरीबी और अभावों के बीच अपनी मस्ती में रहने वाले भीलों की दानवीरता, शूरवीरता, वचनबद्धता की गौरवशाली कहानियां सुनहरे रेगिस्तान में खुशबू सी बिखरी हुई हैं। लेकिन, वाल्तेयर कृत मालाणी गजेटियर में लिखा गया है कि भील लुटेरा वर्ग से हैं। ब्रिटिश वाल्तेयर की यह बात कतई स्वीकार्य नहीं है। भीलों के गौरव गीत गाने की जगह उनकी छवि को धूमिल करना अनुचित है और उनको इस पीड़ा से मुक्त करने के प्रयासों की जरूरत है। ये प्रयास दुनिया के उन सभी आदिवासी समुदायों के लिए भी करने की जरूरत है, जिन्होंने मानवता, प्रकृति, मूल्यों को बचाने,संवर्धित करने का कार्य किया है। इस बात को याद रखना होगा कि मेवाड़ में महाराणा प्रताप मुगल शासक अकबर के खिलाफ भील सहयोग से ही हल्दीघाटी का युद्ध लड़ सके थे। ब्रिटिश सरकार ने आदिवासियों की ताकत को देखते हुए भील कोर की स्थापना की थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के विभिन्न क्षेत्रों मे आदिवासी आंदोलन हुए। राजस्थान के मानगढ की चौकी पर धर्म गुरु गोविंद गुरु के सान्निध्य में चल रहे एक कार्यक्रम में अंग्रेजी पलटन ने मशीनगन से निहत्थे 1500 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। ब्रिटिश सरकार को भय था कि आदिवासी उनके खिलाफ रणनीति रच रहे हैं। ब्रिटिश शोषण के विरुद्ध कई आदिवासी आंदोलन हुए। इसके बावजूद वे गरीबी और शोषण के शिकार रहे। उनको वह गौरव, मान-सम्मान हासिल नहीं हुआ जिसके वे हकदार थे।
आदिवासी समाज के बिखरे गौरवशाली इतिहास के संकलन के साथ उनके योगदान का दस्तावेजीकरण कर आदिवासियों की नई पीढ़ी और गैर आदिवासियों के बीच ले जाने की जरूरत है। गौरवशाली इतिहास मौखिक परंपरा में लोक गीत, दोहे और कहानियों भी जिंदा हंै। आदिवासी अपने गौरवशाली इतिहास से सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से और ज्यादा मजबूत होंगे। उनकी परंपरा, मूल्यों के प्रति सजगता बढ़ेगी, उनको गर्व महसूस होगा। साथ ही गैर आदिवासी समाज का आदिवासियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान बढ़ेगा। इससे समाज में एकजुटता का विकास होगा। देश की स्कूलों, कॉलेजों और दूसरे संस्थानों में आदिवासी केन्द्रित विभिन्न कार्यक्रमों के साथ आदिवासियों के स्थानीय एवं राष्ट्रीय योगदान पर चर्चा होनी चाहिए। उनका गौरव बढ़ाने वाले कार्यों को स्कूल-कॉलेज के शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की जरूरत है ताकि इतिहास की अनदेखी से हाशिए पर आए आदिवासियों को उनका गौरव लौटाया जा सके। साथ ही उन मुद्दों और चुनौतियों पर भी चर्चा करने की जरूरत है जिनसे उनका मान मर्दन होता है। उन चुनौतियों, गरीबी, भेदभाव से मुक्ति के लिए आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को मिलकर समावेशी भाव से कार्य करने की जरूरत है। आदिवासियों के योगदान से उनके समाज का ही नहीं पूरे देश का गौरव बढ़ा है। उनके योगदान के कारण समूचे देश और प्रकृति को बहुत फायदा हुआ है। संस्कृति और पर्यावरण को संरक्षण मिला है।
आदिवासियों का गौरव बढ़ाने में सभी को हर स्तर पर संवेदनशील होकर काम करने की जरूरत है। हाशिए पर रहे आदिवासी और उनके गौरव को सही जगह मिल सके, इसके लिए सभी मिलककर कार्य करें। केन्द्रीय युवा कार्यक्रम मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया के दिशा निर्देश में नेहरू युवा केंद्र संगठन एवं छत्तीसगढ़ सरकार जशपुर में दस हजार जन जातीय गौरव पदयात्रा की भव्य शुरुआत की है।

Hindi News / Prime / Opinion / आदिवासियों को लौटाया जाए उनका गौरव, सभी करें प्रयास

ट्रेंडिंग वीडियो