तर्कशील लोग इस बात से असहमत हैं कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन और उसके नेता शी जिनपिंग ताइवान के खिलाफ सैन्य कदम उठाएंगे। इनका मानना है कि कुछ वर्षों तक ऐसा कुछ नहीं होगा तो कुछ का विश्वास है कि चीन 2022 की शुरुआत में होने वाले ओलम्पिक खेलों के बाद कार्रवाई कर सकता है जैसे कि व्लादिमीर पुतिन ने 2014 के सोची ओलम्पिक के बाद क्रीमिया को लेकर किया था। ताइवान पर हमला कभी भी हो, पश्चिम के लिए दुविधा उसी तरह होगी जिस तरह से 1936 में हिटलर द्वारा राइनलैंड में जर्मन सेना भेजने से मित्रराष्ट्रों को हुई थी। 85 वर्ष पहले पश्चिमी देशों ने आंखें बंद कर ली थीं, जर्मनी को खुश करने की नीति विफल रही। इसके बाद जो हुआ, वह एक तबाही थी।
तो क्या चीन ताइवान पर हमले की तैयारी में है। चीन के लड़ाकू जहाज हफ्तों से ताइवान की हवाई सुरक्षा का जायजा ले रहे हैं। अगला कदम सम्भवत: समुद्र में मुठभेड़ का होगा। जब भी इस तरह की घटना होगी, अमरीका और उसके सहयोगी अचानक और अपरिहार्य हालात का सामना करेंगे कि ताइवान की सुरक्षा करें या मौन सहमति दें। अमरीका ताइवान की रक्षा के मामले में ताइवान रिलेशंस एक्ट और राष्ट्रपतियों के बयानों से बंधा हुआ तो है, पर वास्तव में कोई नहीं जानता कि इसका मतलब क्या है। इसका अर्थ मुक्त समुद्र में बीजिंग की आक्रामकता के खिलाफ नजर आने वाला और मजबूत गठबंधन बनाना होना चाहिए। आर्थिक प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होना वाला है, विशेषकर शी और उनके कट्टर सहयोगियों के खिलाफ भी नहीं।
उधर, चीन ने भी अपनी बयानबाजी तेज कर दी है। पिछले महीने अमरीका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने चीन के खिलाफ आक्रामक बयान दिए थे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश मामलों के प्रमुख यांग जिएची ने भी यहां तक कह दिया था कि अमरीका चीन पर हमला कराने के लिए कुछ देशों को राजी भी कर रहा है।’ लगभग हर अमरीकी राष्ट्रपति ने अस्पष्टता अपनाई है, जबकि ट्रंप जैसे कुछ राष्ट्रपतियों ने ताइवान की आजादी को लेकर सीधे और प्रत्यक्ष संकेत दिए हैं। बाइडन प्रशासन ने बीजिंग के साथ अपने संबंधों की शुरुआत बैकफुट ड्राइव से की है। इसे जल्द ही आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह बाइडन पर निर्भर करता है कि वे स्पष्ट संवाद करें कि अमरीका अपने सहयोगियों के साथ खड़ा है। यह स्पष्टता का वक्त है। इसके अभाव में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को वे संदेश हासिल होंगे, जिनकी उसे जरूरत है।
(लेखक स्तम्भकार, निक्सन फाउंडेशन के अध्यक्ष और चैपमैन यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल में लॉ प्रोफेसर हैं)
द वॉशिंगटन पोस्ट