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नेतृत्वः पाउलो कोएलो की किताब ‘द अलकेमिस्ट’ से भी सीखें सबक

समझें कि कैसे प्रबंधित करें अपना प्रारब्ध और स्वधर्म की अवधारणा

जयपुरNov 25, 2024 / 10:33 pm

Nitin Kumar

प्रो. हिमांशु राय
निदेशक, आइआइएम इंदौर
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पाउलो कोएलो का उपन्यास, ‘द अलकेमिस्ट’ पढ़ा है? यह उपन्यास आत्म-खोज, उद्देश्य और अपने सपनों की खोज के लिए अंतर्दृष्टि के लिए जाना जाता है। एक लीडर या मैनेजर के लिए, यह साहस, दृढ़ विश्वास और अपने प्रारब्ध के साथ तालमेल बिठाने की शक्ति पर मूल्यवान सबक प्रदान करता है। उपन्यास में बहुत से अद्भुत विचार हैं, किन्तु इसके सबसे सम्मोहक विचारों में से एक इस वाक्यांश में समाहित है – ‘अपने प्रारब्ध को पहचानना ही आपका एकमात्र वास्तविक दायित्व है।’ यह न केवल नेतृत्व के क्षेत्र में बल्कि भगवद्गीता में वर्णित ‘स्वधर्म’ की प्राचीन भारतीय अवधारणा से प्रतिध्वनित होता है। साथ में, ये विचार एक नेता के रूप में अपने अद्वितीय उद्देश्य को जानने और उसे पूरा करने के महत्त्व को दर्शाते हैं।
जिन्होंने यह उपन्यास पढ़ा है, वे जानते हैं कि यह एक चरवाहे, सैंटियागो पर आधारित है, जो अपने प्रारब्ध को खोज रहा है। उसकी यात्रा दर्शाती है कि हर व्यक्ति का एक अनन्य, अनूठा मार्ग होता है जिसके लिए साहस, लचीलेपन व अज्ञात को अपनाने की इच्छा की आवश्यकता होती है। यह वैसा ही है जैसे लीडरों और प्रबंधकों के पास एक ‘उद्देश्य’ होता है द्ग यानी उनका प्रारब्ध, जो उनकी प्रतिभा, मूल्यों और अनुभवों के आधार पर अलग-अलग होता है। इस उद्देश्य को पहचान कर वे अधिक प्रभावी, प्रामाणिक और अनुकूलनशील बन जाते हैं। नेतृत्व में, उद्देश्य को जानना निर्णयों, कार्यों व चुनौतियों के प्रति प्रतिक्रियाओं का मार्गदर्शन करता है। जो लीडर अपने मिशन को समझता है, वह अपने मूल मूल्यों से विचलित नहीं होता, और न ही विकर्षणों या प्रलोभनों से प्रभावित होता है। ऐसे में वह दूसरों को भी अपनी क्षमता का उचित प्रयोग करने में मदद करता है, जिससे संस्थान में निरंतर विकास की संस्कृति बनती है।
कोएलो की धारणा द्ग ‘अपने प्रारब्ध को समझना ही आपका एकमात्र वास्तविक दायित्व है’ द्ग यह सुझाव देती है कि अपने उद्देश्य को पूरा करना केवल एक व्यक्तिगत प्रयास नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी है। नेतृत्व में, इसका अर्थ है यह स्वीकार करना कि आपकी स्थिति आपके सिद्धांतों और प्रतिभाओं के अनुरूप कार्य करने के कत्र्तव्य के साथ आती है। जो लीडर अपने मूल्यों के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं – वे अधूरापन महसूस करते हैं। ऐसी स्थिति में वे बिना किसी तय लक्ष्य के टीमों का नेतृत्व करते हैं, जिससे ठहराव और दिशाहीनता होती है। यह विचार भगवद्गीता में वर्णित स्वधर्म की अवधारणा के समान है। स्वधर्म का अर्थ है ‘अपना कत्र्तव्य’, और यह बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति की एक अनूठी भूमिका या कत्र्तव्य है जो उसके अंतर्निहित स्वभाव के अनुरूप है। गीता में, श्रीकृष्ण अर्जुन को एक योद्धा के रूप में अपने स्वधर्म का पालन करने की सलाह देते हैं, भले ही इसमें युद्ध शामिल हो। इसी प्रकार, लीडरों की सच्ची संतुष्टि कठिन कार्यों से बचने में नहीं बल्कि उन्हें अपने कत्र्तव्य के अनुरूप अपनाने में निहित है। लीडर अक्सर दूसरों की नकल करने या ऐसे रुझानों का अनुसरण करने के लिए लुभाए जाते हैं जो उनके मूल्यों के अनुरूप नहीं हो सकते हैं। स्वधर्म पूरा करने में सफल लीडर दूसरों के लिए अनुसरण करने के लिए एक मानक भी स्थापित कर सकेगा। ऐसा लीडर व्यक्तिगत मूल्यों और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच संरेखण विश्वास, सम्मान और प्रेरणा की नींव बनाता है। जो लीडर अपने प्रारब्ध को स्वीकार करते हैं और अपने स्वधर्म के अनुसार कार्य करते हैं, वे दूसरों को इस प्रक्रिया में अपने प्रारब्ध को साकार करने के लिए प्रोत्साहित करने में सक्षम होते हैं और नेतृत्व के सच्चे सार को मूर्त रूप देते हैं।

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