बिना कोचिंग के 10 घंटे पढ़ाई खास बात यह है कि तीन विशिष्ट सेवाओं में चयन के दौरान उन्होंने किसी तरह की कोई कोचिंग नहीं की। इंटरनेट की मदद से अपने बूते पर तैयारी की। उन्होंने चयनित अधिकारियों से मार्गदर्शन और शिक्षण सामग्री की मदद अवश्य ली। सिहाग के अनुसार उन्होंने प्रतिदिन 10 घंटे पढ़ाई की। एक के बाद एक उनकी सफलताएं युवाओं को प्रेरित करती हैं कि लक्ष्य तय हो और आत्मबल मजबूत हो तो कठिन साधना से मनचाही सफलता पाई जा सकती है।
पत्नी इनसे भी अव्वल सिद्धार्थ सिहाग की पत्नी रुक्मणी सिहाग इनसे भी अधिक प्रतिभाशाली हैं और वे भी युवाओं के लिए मिसाल हैं। वे 6वीं कक्षा में फेल हुई थी। इसके बाद पढ़ाई में ऐसी जुटी कि उन्होंने भी बिना किसी कोचिंग के वर्ष 2011 में आईएएस परीक्षा में देश में दूसरी रैंक हासिल की। बूंदी कलक्टर पद के बाद से वे लम्बे अवकाश पर हैं। उनके पिता दिलबाग सिंह सिहाग, हरियाणा में चीफ टाउन प्लानर अफसर के पद से रिटायर हुए हैं। जबकि भाई सिद्धांत दिल्ली में जज हैं।
र्निविवाद अधिकारी की छवि एक वर्ष से करौली में पदस्थापित सिहाग की छवि अभी तक र्निविवाद अधिकारी के रूप में है। वर्तमान राजनीतिक माहौल में अमूमन अधिकारी राजनीतिक खेमेबंदी में उलझ कर आरोप-प्रत्यारोप के घेरे में आ जाते हैं। जबकि सिहाग ऐसे अधिकारी हैं, जिनसे खेमों में बंटे सत्ताधारी दल के विधायक हों या भाजपा के सांसद या पदाधिकारी सभी उनसे संतुष्ट नजर आते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में जिले में उनके चिकित्सकीय प्रबंधन की हर तरफ सराहना हुई है। कोरोना की तेज रफ्तार के बीच उन्होंने हर दिन करौली-हिण्डौन के चिकित्सालयों में कोविड वार्ड के दौरे करके न केवल चिकित्साकर्मियों का मनोबल बढ़ाया बल्कि मरीजों के लिए भी सम्बल प्रदान किया। चिकित्सकीय सुविधाओं व संसाधनों के प्रबंध करने में भी वे संवेदनशील रहे। समस्याओं के त्वरित निस्तारण और सकारात्मक सोच की कार्यशैली उनकी खासीयत है।
उल्लेखनीय है कि करौली से पहले वे झालाबाड़ में भी डेढ़ वर्ष कलक्टर रह चुके हैं।