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जयपुर

बंदर की रोटी ने अस्थमा रोगियों की बढ़ा दी तकलीफ

— होलोप्टेलिया पेड़ से लोग हो रहे एलर्जी के शिकार – डेढ़ महीने शहर में एलर्जी, एलर्जी मरीजों के लिए है भारी

जयपुरMar 08, 2020 / 01:12 pm

Avinash Bakolia

बंदर की रोटी ने अस्थमा रोगियों की बढ़ा दी तकलीफ

बंदर की रोटी ने अस्थमा रोगियों की बढ़ा दी तकलीफ

जयपुर. किसी खास पेड़ के पास पहुंच कर आपको छींक आने लगे या गले में खराश बढ़ जाए तो घबराएं नहीं ऐसा केवल आपके साथ नहीं सभी के साथ हो रहा है। छलील (होलोप्टेलिया इंटेग्रीफोलिया) के पेड़ ने इन दिनों अस्थमा रोगियों की तकलीफ को बढ़ा दिया है। छलील को बोलचाल की भाषा में बंदर की रोटी भी कहते हैं। जयपुर में बड़ी संख्या में यह पेड़ मौजूद हैं और पार्कों में मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों को आसानी से शिकार बना लेते हैं। शहर में अस्थमा के 10 फीसदी रोगियों में भी इसकी एलर्जी से सांस की तकलीफ बढ़ रही है।
बदलते मौसम में उन लोगों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए जो साल भर ठीक रहते हैं, मगर मार्च में एलर्जी से परेशान रहते हैं। जयपुर में इसकी सबसे बड़ी वजह होलोप्टेलिया पेड़ से होने वाली एलर्जी है। इस पेड़ को छलील या बंदर की रोटी के नाम से भी जाना जाता है। इस पेड़ के परागकण हवा के साथ वातावरण में फैल जाते हैं जो लोगों को एलर्जी का शिकार बना देते हैं। जयपुर शहर में छलील सबसे एलर्जिक पेड़ है। इसके परागकण एक से डेढ़ माह की अवधि के लिए उच्च अनुपात में रहते हैं। जयपुर के सेंट्रल पार्क, जवाहर पार्क सहित अनेक स्थानों पर यह पेड़ बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
कैसे दिखाता है असर –
छलील के पेड़ की एलर्जी से सबसे ज्यादा वे लोग प्रभावित हो रहे हैं, जो पार्क में सुबह-शाम घूमने जाते हैं। वहीं अस्थमा के रोगियों में भी इसका असर ज्यादा होता है। हवा में मौजूद इस पेड़ के परागकण सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और फिर शुरू हो जाती है बार-बार छींके आना, जुकाम, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, जरा सा चलने में सांस भरने की तकलीफ।
ऐसे करें बचाव –
संवेदनशील रोगियों को सलाह है कि वह सुबह-शाम बाहर निकलने से बचें। पार्क में जाने से बचें। यदि आवश्यक हो तो सुबह घूमने वालों, स्कूटर-बाइक सवार लोग ट्रिपल लेयर का मास्क पहन कर ही निकलें। जुकाम, छींके होने की शिकायत पर डॉक्टर की सलाह लें। एसपीटी जांच करवा कर इस एलर्जी का पता लगाया जा सकता है। यह एलर्जी पता चलने पर इम्यून थैरेपी से शरीर में एंटी बॉडी तैयार कर इलाज किया जाता है।
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29 फरवरी को इस पेड़ का परागकण देखा गया
होलोप्टेलिया इंटीग्रीफोलिया पेड़ शहर का सबसे एलर्जेनिक पौधा परागकण है। यह परागकण एक से दो महीने की अवधि के लिए हवा में बहुत अधिक मात्रा में रहता है। यह प्लांट परागकण जयपुर शहर की हवा में इस साल पहली बार 29 फरवरी को देखा गया। इस परागकण का हवा के मौजूद होने में उन मरीजों के लिए मुश्किल समय आता है जो परागकण से एलर्जी के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। विद्याधर नगर स्थित अस्थमा भवन में लगे बुर्कार्ड परागकण काउंटर उपकरण से परागकण के हवा में होने का पता लगाया गया। दमा परागण की वेबसाइट पर दैनिक परागकण गणना प्रदर्शित की जा रही है। इस डेटा को हर कोई देख सकता है और अस्थमा और एलर्जी के रोगियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
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होलोप्टेलिया के अलावा केसिया, पॉएसी, एस्ट्रेसी के परागकण वातावरण में है। इससे भी मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में 15 से 20 प्रतिशत केस एलर्जी के बढ़ गए हैं, जिनमें छलील के पेड़ से होनेवाली एलर्जी के केस काफी आ रहे हैं। ऐसे लोगों को सुबह और शाम की वॉक को अवोइड करना चाहिए। जरूरी हो तो मास्क लगाकर या धूप निकलने के बाद ही घूमने जाएं।
– डॉ. अजीत सिंह, एलर्जी स्पेशलिस्ट, एसएमएस अस्पताल

यह परागकण सुबह और शाम के समय हवा में उच्च सांद्रता में मौजूद होता है। जिन रोगियों को इस पौधे से एलर्जी है, उन्हें अपने घरों के बाहर जाना कम करना चाहिए। सुबह और शाम के समय ट्रिपल लेयर्ड मास्क से नाक और मुंह को अच्छी तरह से ढंकना चाहिए। होलोप्टेलिया का यह परागकण मौसम अप्रैल के अंत तक रहेगा। लगभग 10त्न अस्थमा के रोगी होलोप्टेलिया एलर्जी से पीडि़त हैं।
– डॉ. निष्ठा सिंह, चेस्ट कंसल्टेंट, अस्थमा भवन

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