एसएनसीयू… जहां बुंदेलखंड के विलुप्त औषधीय पौधे पलेंगे
SNCU…where extinct medicinal plants of Bundelkhand will grow
टीकमगढ़। पौधों के एसएनसीयू में काम करते वैज्ञानिक।
पौध संरक्षित करने पहला टिशु कल्चर सेंटर बना, देश के विभिन्न हिस्सों से मंगाए जाएंगे पौधे टीकमगढ़. आपने बच्चों सुरक्षित करने वाले स्पेशल न्यू बोर्ड केयर यूनिट (एसएनसीयू) के बारे में तो सुना होगा। क्या पौधे के एसएनसीयू के बारे में सुना है। कृषि महाविद्यालय में पौधों के लिए एसएनसीयू बनाया गया है। यहां पर बुंदेलखंड में विलुप्त हो चुके औषधीय पौधों को संरक्षित किया जाएगा। इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों से पौधों को लाया जाएगा। यहां पर टिशु कल्चर के माध्यम से इनकी पौध तैयार की जाएगी।
बुंदेलखंड में 40 दशक पूर्व विभिन्न प्रकार के औषधीय पेड़ हुआ करते थे, लेकिन अब यह गायब हो गए है। इन पौधों की फल, पत्तियों, जड़ आदि का उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाओं के निर्माण किया जा जाता था। ऐसे में पेड़ों की पैदावार फिर से बढ़ाने के लिए कृषि महाविद्यालय में टिशू कल्चर सेंटर तैयार किया गया है। कृषि महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. योग रंजन का कहना है कि यह पौधों का एसएनसीयू है। इसमें विभिन्न औषधीय पौधों को फिर से पैदा करने के लिए उन्हें धरती के गर्भ की तरह अनुकूल परिस्थितियां दी जाएंगी। यह पूरा सिस्टम ऑटोमेटिक होगा और अपने आप पौधों के अनुरूप तापमान, उनके भोजन के लिए खाद-पानी की व्यवस्था को नियंत्रित करेगा। यहां पर पौधों को विकसित कर फिर से उन्हें खेतों और मैदान में पहुंचाया जाएगा। किसानों को इसके औषधीय गुणों की पूरी जानकारी दी जाएगी, ताकि वह इन्हें संरक्षित करने के साथ ही अपनी आय में वृद्धि कर सकें।
यह पौधे हुए गायब
डॉ. योग रंजन ने बताया कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कर्न्वेशन ऑफ नेचर की रिपोर्ट के अनुसार विलुप्त प्राय वन प्रजातियों में अर्जुन, लाल चंदन, अंजन, फालसा, चिरौंजी, तेंदू, शहतूत, खिरनी शामिल है तो औषधीय पौधों में ब्राह्मी, सलाईए, हर्रा, गूग्गल, सर्पगंधा, शतावर, कालमेघ, अंजीर, खैर शामिल है। उनका कहना है कि यह पेड़-पौधे पहले बुंदेलखंड में प्रचुर मात्रा में होते थे। इन पौधों को विकसित करने में 45 से 60 दिन का समय लगेगा।
उत्तराखंड और सतपुड़ा से आएंगे पौध
औषधीय पौधों को तैयार करने के लिए इन्हें उत्तराखंड, सतपुड़ा सहित देश के अन्य हिस्सों से लाया जाएगा। डॉ. योग रंजन ने बताया कि हर्रा और सलाई के पौधे महाकौशल, गूग्गल श्योपुरा से, सर्पगंधा सतपुड़ा, शतावर, कालमेघ मालवा क्षेत्र से बुलाया जाएगा। वहीं शीतोष्ण क्षेत्र में पाई जाने वाली वन प्रजातियों में जैसे फालसा, अंजीर, खिरनी, अंजन आदि की पौध उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से लाई जाएगी। यहां पर उत्तक संवर्धन के माध्यम से इनकी नई पौध तैयार कर इन्हें संरक्षित किया जाएगा
संरक्षित की जाने वाला पहला केंद्र
कृषि महाविद्यालय में बनाया गया टिशु कल्चर सेंटर संभवता विलुप्त प्रजाति के पौधों को संरक्षित करने वाला पहला केंद्र है। डॉ. योग रंजन ने बताया कि टिशु कल्चर लैब बुरहानपुर और भोपाल में भी है। बुरहानपुर की लैब में खास कर केले की फसल को उन्नत करने के लिए काम किया जाता है तो भोपाल में बांस की विभिन्न प्रजातियों को विकसित करने का। टीकमगढ़ की लैब में संरक्षित करने का काम किया जाएगा।
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