नवीन पटनायक
बीजद के प्रमुख नवीन पटनायक ने 5 मार्च 2000 को ओडिशा के सीएम के रूप में कार्यभार संभाला और तब से लेकर अबतक वो राज्य के सीएम बने हुए हैं। 24 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने राज्य में स्वास्थय, शिक्षा, रोजगार के अवसरों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। दोस्तों के बीच पप्पू नाम से मशहूर नवीन अपने शुरूआती जीवन में राजनीति से दूर रहे। लेकिन पिता के निधन के बाद, उन्होंने 1997 में राजनीति में प्रवेश किया और ओडिशा के अस्का संसदीय क्षेत्र से 11वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए। तब से लेकर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार इन्हें जनता का आर्शीवाद मिलता गया जो भारतीय राजनीति में दुर्लभ है। इन्होंने राज्य की जनता के लिए जो काम किया, उसका आर्शीवाद भी उन्हें भरपूर प्राप्त हुआ। अपनी पार्टी को नवीन नई ऊचांईयों पर ले गए। कांग्रेस हो या बीजेपी, नवीन ने दोनों दलों से अच्छा संबंध रखा ताकि राज्य के विकास में बाधा पैदा न हो।
16 अक्टूबर 1946 को जन्में नवीन पटनायक ने अपने राज्य को बहुत कुछ दिया। इनके कार्यकाल में राज्य ने अभूतपूर्व विकास किया। लेकिन अब यह बात हर कोई जानता है कि ओडिशा में सरकार अब नवीन नहीं बल्कि पूर्व आईएस अधिकारी वी. के. पाण्डियन चलाते हैं।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरी तैयारी के साथ ओडिशा में उतरी है और बीजद को कड़ी मिलने की उम्मीद है। पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक सभी नवीन पटनायक पर जमकर हमला बोल रहें हैं। अगर इस चुनाव में बीजद हार जाती है तो इसे नवीन पटनायक की लंबी राजनीतिक करियर का अंत माना जाएगा।
नीतीश कुमार
आने वाले कई दशकों तक जब भी यह प्रश्न आएगा कि बिहार को रहने लायक किसने बनाया? गुंडाराज, अपहरण, फिरौती, भ्रष्टाचार के दौर से किसने निकाला? शहाबुद्दीन, साधु यादव जैसे माफिया के राज का अंत किसने किया? चौपट शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर किसने लाया? इन सवालों का एक जवाब है- नीतीश कुमार। वरना बिहार ने तो वो दौर भी देखा जब कार के शोरूम लूट लिए जाते थे और पुलिस एफआईआर भी दर्ज नहीं करती थी। सत्ता द्वारा पोषित माफियों का ऐसा बोलबाला था कि प्रदेश में 8-10 समानांतर सरकारें चलती थी। कोई भी चुनाव बिना जातिय हिंसा के संपन्न नहीं होता था।
नीतीश कुमार ने इन सभी दलदलों से बिहार को बाहर निकाला। अपना पहले कार्यकाल में उन्होंने ऐतिहासिक काम किया। बिहार को रहने लायक बनाया। बिहार की जनता ने भी इनके काम का मान रखा और लगातार लालू परिवार को बिहार की सत्ता से दूर रखा। नीतीश कुमार के आने के बाद ही बिहार में काम कागज से निकलकर धरातल पर होना शुरू हुआ। गांव-गांव बिजली पहुंची, गुंडों पर लगाम कसना शुरू हुआ।
लगभग पिछले 18 वर्ष से नीतीश सीएम हैं, उन्होंने बिहार को अपने पहले कार्यकाल में सुधारा, लेकिन 2010 के बाद बिहार के विकास को लेकर उनका फोकस हिल गया। इस कारण बिहार को काफी नुकसान हुआ। आज भी बिहार के युवा नौकरी की तलाश में दर दर की ठोकरें खाते हैं। आज भी बिहार से जाने वाली ट्रेनों में सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। इन सब कारणों के लिए भी मौजूदा सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार माना जा सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने कहा था कि यह हमारा आखिरी चुनाव है, हमने आपके लिए इतना कुछ किया है, लास्ट बार हमारा साथ दे दिजिए। हाल के दिनों में नीतीश जिस तरह का बयान दे रहे हैं उसे देखकर लगता है कि उनके रिटायर होने का समय आ गया है।