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Nagaur news Diary…30 तक जीवन प्रमाणपत्र जमा कराना पड़ेगा

नागौर. राज्य सरकार के सभी पेंशनर्स अपना जीवन प्रमाणपत्र 30 नवंबर तक जमा करा सकते हैं। इसके बाद फिर मुश्किल हो जाएगी। राजस्थान पेंशनर समाज के जिला अध्यक्ष पुरुषोत्तम जोशी ने कहा कि अब तक मिली जानकारी के अनुसार 50 प्रतिशत से भी कम लोगों ने इसे जमा कराया है। इसको ऑफलाइन एवं ऑनलाइन दोनो […]

नागौरNov 28, 2024 / 09:45 pm

Sharad Shukla

नागौर. राज्य सरकार के सभी पेंशनर्स अपना जीवन प्रमाणपत्र 30 नवंबर तक जमा करा सकते हैं। इसके बाद फिर मुश्किल हो जाएगी। राजस्थान पेंशनर समाज के जिला अध्यक्ष पुरुषोत्तम जोशी ने कहा कि अब तक मिली जानकारी के अनुसार 50 प्रतिशत से भी कम लोगों ने इसे जमा कराया है। इसको ऑफलाइन एवं ऑनलाइन दोनो ही माध्यमों से जमा कराया जा सकता है। जीवन प्रमाणपत्र जमा कराए जाने की अंतिम तिथि तीस नवंबर है। इस माह जमा नहीं कराए जाने की स्थिति में उनकी पेंशन रुक भी सकती है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पेंशनर्स की समस्याओं के समाधान के लिए राजस्थान पेंशनर जिला कार्यालय कलक्ट्रेट परिसर में 30 नवंबर को राजकीय अवकाश होने के पश्चात भी दोपहर 12 बजे से शाम को पांच बजे तक खुला रहेगा।
गरीबों-दलितों के लिए ज्योतिबा फुले ने आजीवन संघर्ष किया
-ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि मनाई

नागौर. जोधपुर रोड स्थित गो-चिकित्सालय परिसर में ज्योतिबा फुले की 134वीं पुण्यतिथि स्वामी कुशालगिरी के सानिध्य में मनाई गई। कार्यक्रम में स्वामी कुशालगिरी ने कहा कि ज्योतिबा फुले ने महिलाओं को शिक्षा से जोडऩे का प्रयास आजीवन करने के साथ ही विधवाओं के लिए आश्रम बनवाए, और उनके पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया। बाल विवाह के दुष्परिणामों को लेकर वो लोगों को जागरूक करते रहे। गरीबों व दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले आजीवन संघर्ष करते रहे। वह एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शिनिक, लेखक व क्रांतिकारी थे। उन्होंने कहा कि ज्योतिबा फुले के कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले ने पूरा योगदान दिया। समाजोत्थान के अपने मिशन पर कार्य करते हुए ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ सत्यशोधक समाज नामक संस्था का निर्माण किया। वह स्वयं इसके अध्यक्ष थे। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शूद्रो और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त करना था। इस दौरान ज्योतिबा फुुले के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ ही माल्यार्पण किया गया।
नागौर. जोधपुर रोड स्थित गो-चिकित्सालय परिसर में ज्योतिबा फुले पुण्यतिथि मनाते हुए
बच्चों को सूर्य नमस्कार व प्राणायाम की शिक्षा देनी चाहिए
नागौर. गोगेलाव ग्राम में चल रही भागवत कथा में संत हरिशरण महाराज ने प्रचन करते हुए नैतिक सिद्धांतों की विशेषताएं भी समझाई। उन्होंने कहा कि हमारा खान-पान भारत की भूमि के अनुरूप होना चाहिए। पश्चिम की नकल हमें नहीं करना है। भारत की भूमि व प्रकृति ही हमारी माता है। इसलिए अपने बच्चों को योग प्राणायाम सूर्य नमस्कार करने की प्रेरणा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ज्ञान में भारत कभी कम नहीं था। इसलिए आज सनातन संस्कृति हिंदू समाज में जीवित है। ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जिससे मंत्र नहीं बनता हो। ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जिसे कोई औषधि नहीं बनती हो। इसी तरह ऐसे ही कोई भी व्यक्ति संसार में अयोग्य नहीं होता है। इसलिए अपने बच्चों को भारतीय सनातन धर्म की शिक्षा और संस्कार देना अति आवश्यक है। उन्होंने पर्यावरण के साथ ही सनातन की रक्षा करने का आह्वान करते हुए कंस का वध पूतना का वध सहित अनेक प्रसंगों पर व्याख्यान दिया गया। श्रीमद् भागवत कथा में मुकेश भाटी, मेघराज राव, मूलाराम गौड़, हनुमानराम, चेतनराम आदि मौजूद थे।
श्रीमद्भागवत भगवान की महिमा का अपार सागर है
-अमरपुरा में पाटोत्सव का आगाज भागवत कथा से हुआ

नागौर. संत लिखमीदास महाराज स्मारक विकास संस्थान अमरपुरा के तत्वावधान में गुरुवार को पाटोत्सव का भागवत कथा से आगाज हुआ। कथा से पूर्व भागवत की शोभायात्रा निकली। इसके पश्चात विधिपूर्वक यज्ञ के साथ ही भागवत कथा शुरू हुई। कथा वाचन करते हुए पहले दिन यानि की गुरुवार को भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए संत गोवर्धनदास महाराज ने कहा कि निर्गुण भगवान भक्त के प्रेम के कारण सगुण या मानव लोक में शरीर रूप में अवतार लेते हैं। उन्होंने कि सरस्वती के किनारे बैठे मुनि वेदव्यास व नारद मुनि के मध्य में संपन्न प्रश्नोत्तर के रूप में बताया कि जो उदास है वह संत नहीं है, और जो संत है वह उदास नहीं है। संत केवल पर-दुख से चिंतित रहते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत भगवान व भक्त की महिमा है। भारतीय समाज जीवन में अनेक आध्यात्मिक शास्त्रों की रचना की गई है। जिसमें लोक व्यवहार की बातें हैं। श्रीमद् भागवत भगवान की महिमा का सागर है। वाणी की सार्थकता भगवान के नाम उच्चारण में है। संत लिखमीदास महाराज पढ़े लिखे नहीं थे, किंतु भगवत् भक्ति व भगवत् स्मरण आधारित उनका संपूर्ण जीवन रहा है। इस कलयुग में श्रेष्ठ व परमार्थ के कार्य करते हुए ईश नाम स्मरण ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसी में हमारे मानव जीवन की सार्थकता है। पून पंडित विकास शास्त्री के सानिध्य में किया गया। इस दौरान संस्थान के महासचिव राधाकिशन तंवर, सैनिक क्षत्रिय माली संस्थान के अध्यक्ष कृपाराम देवड़ा, डॉ. शंकरलाल परिहार आदि मौजूद थे।

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