केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी मंत्रालय डेटा सुरक्षा नियमों पर परामर्श शुरू करने की तैयारी में है। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम को चार महीने पहले अगस्त में अधिसूचित किया गया था। इस अधिनियम के उपयोग के लिए कम से कम 25 नियम बनाने होंगे। सरकार को ऐसे किसी भी प्रावधान के लिए नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, जिसे वह जरूरी समझती है। इनमें ऑनलाइन सेवा का इस्तेमाल करने से पहले बच्चे की उम्र सत्यापित करने के लिए सहमति ढांचा विकसित करना शामिल है। अधिनियम में कहा गया है कि कंपनियों को 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को अपने प्लेटफॉर्म तक पहुंचने की इजाजत देने के लिए उसके माता-पिता से सहमति लेनी होगी। इसके लिए दो तरीकों की सिफारिश की उम्मीद जताई जा रही है। पहला माता-पिता के डिजीलॉकर ऐप का उपयोग करना और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक टोकन प्रणाली बनाना।
बच्चों का आधार विवरण डिजिलॉकर प्लेटफॉर्म पर माता-पिता को अपने बच्चों के आधार विवरण को डिजिलॉकर प्लेटफॉर्म पर जोडऩे की अनुमति दी जाएगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, यह आधार आधारित प्रमाणीकरण होगा। इंटरनेट प्लेटफॉम्र्स यूजर्स की आधार डिटेल्स की जानकारी नहीं ले पाएंगे। प्लेटफॉर्म यह सत्यापित करने के लिए ऐप को पिंग करने में सक्षम होंगे कि उनकी साइट तक पहुंचने वाला व्यक्ति वास्तव में 18 साल का है या नहीं।
स्टेकहोल्डर्स के साथ कल बैठक संभव आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि 19 दिसंबर को प्रस्तावित नियमों पर सरकार उद्योग स्टेकहोल्डर्स के साथ बंद कमरे में बैठक कर सकती है। इससे संकेत मिलता है कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट जल्द ऑपरेशनल हो सकता है।
माता-पिता के लिए सतर्कता जरूरी 1. लगभग हर उम्र के बच्चे गेम खेलने, होमवर्क या दोस्तों से बात करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट की वजह से बच्चों को पढ़ाई में काफी मदद मिली है, लेकिन इसके साथ ही साइबर क्राइम का खतरा रहता है।
2. बच्चे काफी समय ऑनलाइन बिताते हैं। उनकी सुरक्षा जरूरी है। इंटरनेट के इस्तेमाल से कम उम्र के बच्चों पर कई तरह के खतरे रहते हैं। 3. बच्चा ऑनलाइन बुलिंग का शिकार हो सकता है या वह किसी और बच्चे को परेशान कर सकता है। पंद्रह साल की उम्र के बच्चों में साइबर बुलिंग सबसे ज्यादा देखी जाती है।
4. सोशल नेटवर्किंग साइट पर आपत्तिजनक वीडियो शेयर करने का गलत असर बच्चे की मानसिक सेहत पर पड़ता है। इसलिए पैरेंट्स को चौकन्ना रहना होगा। 5. पार्टनर या एक्स-पार्टनर सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया के जरिए धमकी दे सकते हैं। टीनएज लड़कियों के साथ ऐसा ज्यादा होता है।
6. टीनएज बच्चों के पैरेंट्स पर ज्यादा जिम्मेदारी है। बच्चे की ऑनलाइन एक्टिविटी पर उनका नजर रखना जरूरी है। 7. बच्चे को फिजिकल एक्टिविटी और सोशल मीटिंग्स में जाने के लिए प्रेरित करें। इससे वह इंटरनेट और सोशल मीडिया से दूर रहेगा।