एक नगर में दो भाई रहते थे। मदन और मोहन। दोनों को पशु-पक्षियों से बड़ा लगाव था। वे हर रोज खुले मैदान में जाकर चिडिय़ा को दान डालते। उन्हें ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था। चिडिय़ा का मधुर स्वर दोनों को बहुत पसंद था। वे गरीब थे। उनके पिता मुश्किल से उनके परिवार के लिए दो वक्त की रोटी कमाते थे। मगर वे दोनों अपने हिस्से का थोड़ा अनाज अलग करके चिडिय़ा और कबूतरों के लिए रखते थे।
…………………………………………………………………………………………………………………… पक्षियों की प्यारी दुनिया
रवि और मोहन बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों को पक्षियों से बहुत प्यार था। रवि के घर के पास एक बड़ा बगीचा था, जहां हर रोज कई तरह के पक्षी आते थे। रवि और मोहन ने तय किया कि वे हर दिन पक्षियों को दाना डालेंगे और उनके साथ समय बिताएंगे।एक दिन रवि अपने घर से एक थाली में दाने लेकर आया और मोहन के साथ बगीचे में गया। मोहन ने दाने थाली में रखे और धीरे-धीरे उन्हें जमीन पर बिखेरने लगा। जैसे ही दाने जमीन पर गिरे, कई रंग-बिरंगे पक्षी वहां आ गए। कुछ लाल, कुछ पीले और कुछ हरे रंग के पक्षी उछलते-कूदते हुए दाने खाने लगे।
…………………………………………………………………………………………………………………… छोटी सी चिडिय़ा
एक समय की बात है। दो भाई रोहित और रोहन थे। रोहित बड़ा और रोहन छोटा भाई था। रोहित बारह एवं रोहन सात साल का था। दोनों को अपने घर के बगीचे मे आने वाली चिडिय़ां को दाना खिलाना बहुत पसंद था। रोज जल्दी उठकर वे चिडिय़ां को दाना खिलाते थे। एक दिन वे खेल रहे थे, तभी उनकी निगाह एक घायल चिडिय़ा पर पड़ी।
…………………………………………………………………………………………………………………… चिडिय़ा का दाना
रोहन और मोनु दो दोस्त थे। वे एक दिन एक पार्क में खेल रहे थे। वहां के हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत फूलों ने उनका मन मोह लिया था। खेलते-खेलते उन्होंने देखा कि पार्क में कई पक्षी भी थे, जो भोजन की तलाश में इधर-उधर उड़ रहे थे। रोहन ने मोनु से कहा, मोनु, देखो! ये पक्षी भूखे हैं। क्यों न हम उन्हें कुछ खाना दें। दोनों घर से अनाज ले आए। उन्होंने पक्षियों के लिए अनाज बिखेर दिया। पक्षी दाना चुगने लगे।
…………………………………………………………………………………………………………………… सबका भला हो
एक घर में दो भाई रहते थे। एक भाई का नाम मदन था और दूसरे भाई का नाम मोहन था। वह दोनों भाई हमेशा मिल-जुलकर रहते थे। एक बार की बात है। दोनों भाई कहीं बाहर घूमने गए। वे जिस जगह पर गए थे, वह जगह बहुत खूबसूरत थी। वह दोनों भाई पकड़म-पकडाई खेल रहे थे। तभी उन्हें दोनों भाइयों को एक चिडिय़ा दिखाई दी। वह चिडिय़ा अकेली बैठी थी। वह उस चिडिय़ा को उसके परिवार से मिलाना चाहते थे, लेकिन उनको कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
…………………………………………………………………………………………………………………… प्यारे-प्यारे पक्षी
दो भाई थे, मोहित और रोहित। हर रविवार घंटों बाहर खेलते रहते थे। एक दिन अपने बाग में आई कुछ चिडिय़ों को दाना चुगने के लिए डाल रहे थे। तभी मोहित ने रोहित से कहा, यह देखो भाई कितनी प्यारी प्यारी चिडिय़ां है और दाना भी कितनी तेजी से खा रही हैं। तभी वे देखते हैं कि एक चिडिय़ा उड़ नहीं पा रही थी।
……………………………………………………………………………………………………………….. चहचहातीं चिडिय़ां
एक समय की बात है। दो दोस्त थे। एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों पक्षियों से भी बहुत प्यार करते थे। रोजाना वे बगीचे में खेलने जाते थे। एक दोस्त पक्षियों को दाना खिलाता था, जबकि दूसरा उन्हें प्यार करता था। वे बदल-बदल कर यह काम करते थे। दिन एक दोस्त दाना खिलाता और दूसरा प्यार करता, तो अगले दिन दूसरा दाना खिलाता और पहला दोस्त प्यार करता। बगीचे में जो पक्षी आते थे।
……………………………………………………………………………………………………………….. पक्षियों के दोस्त
रवि और मोहन भाई थे और उन्हें प्रकृ ति से बहुत प्यार था। एक दिन वे पार्क में घूमने गए और उन्होंने देखा कि वहां बहुत सारे छोटे पक्षी उड़ रहे थे। रवि ने सोचा कि इन पक्षियों को करीब से देखने का कितना अच्छा अनुभव होगा। उसने मोहन से कहा, चलो, हम इनके लिए कु छ दाना लाते है। दोनों भाई घर से थोड़ा दाना लेकर आए।
…………………………………………………………………………………………………………………… गहरी मित्रता
एक गांव में एक किसान रहता था। वह गांव के बाहर एक खुले मैदान में बगीचे के पास नदी के किनारे रोज पक्षियों को दाना खिलाने जाता था। उसका मानना था कि ‘खाया सो खोया, खिलाया सो पाया। उसके दो बेटे थे। उनके नाम रोहित और मोहित थे। रोहित बड़ा और समझदार था, जबकि मोहित छोटा और नासमझ बालक था। रोहित रोज अपने पिता के साथ पक्षियों को दाना खिलाने जाता था और उनके साथ खेलता था। कु छ समय बाद पिता ने यह पूरा काम रोहित को ही सौंप दिया। रोहित प्रतिदिन पक्षियों को दाना खिलाता था, क्योंकि यह काम उसने अपने पिता से सीखा था।
दो भाई थे। दोनों को पक्षियों से बड़ा प्यार था। दोनों रोज पार्क जाते थे। पक्षियों के लिए दाना लेकर जाते थे। वहां जाकर उनको दाना खिलाते। दाना खिलाते-खिलाते एक चिडिय़ा रोज उन दोनों के कंधे पर आकर बैठ जाती। उनके चारों तरफ मंडराती। कभी हाथ पर बैठ जाती। यह देखकर दोनों को बहुत अच्छा लगता था। इसलिए वे नियमित पार्क जाते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि चिडिय़ा उनके पास नहीं आई। वे सोचने लगे कि आखिर उनकी प्यारी दोस्त को क्या हुआ।