समानता की चहचाहट
एक बार की बात है। एक जंगल में एक खूबसूरत पेड़ था। एक दिन वहां एक लाल रंग की चिडिय़ा रहने आती थी। फिर उसका परिवार धीरे-धीरे बढऩे लगा। उसके अंडे बड़े-बड़े थे। फिर उसमें से उसके बच्चे निकले। वहां एक सुनहरे रंग की चिडिय़ा आती है। उसका भी परिवार बढ़ता है। उसके अंडे लाल चिडिय़ा के अंडों से आकार में थोड़े छोटे होते हैं। फिर भी दोनों चिडिय़ां आपस में मिलजुल कर रहती थीं। अपने बच्चों को खाना खिलाती थीं और उनसे बहुत प्यार करती थीं। उन्हें अच्छी-अच्छी ज्ञान की बातें सिखाती थीं। दोनों चिडिय़ा इतनी अलग थीं, फिर भी दोनों आपस में कोई भेदभाव नहीं करती थीं और अपने परिवार के साथ हंसी-खुशी से रहती थीं। उनके बच्चे भी आपस में मजे से मिलकर खेलते थे। उनकी मां एक-दूसरे के काम हाथ बंटाती थी। उनके मन में एक-दूसरे के प्रति ईष्र्या का भाव नहीं था। इससे हमें शिक्षा मिलती है कि हमें भी भेदभाव किए बिना मिलजुलकर रहना चाहिए।
- दिव्या शर्मा, प्रथम विजेता, उम्र- 12 वर्ष
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चिडिय़ा मां ने दी सीख
एक हरे-भरे पेड़ के नीचे एक छोटी चिडिय़ा ने अपना घोंसला बनाया था। वहां एक बड़ा अंडा था, जिसे वह बड़े प्यार सेती थी। एक दिन अंडे से अजीब सा बच्चा बाहर निकला। वह दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग दिखता था- बहुत बड़ा और भारी। चिडिय़ा और उसके बाकी छोटे बच्चे हैरान थे। नए बच्चे ने धीरे-धीरे चलना सीखा, लेकिन उसका आकार उसे दूसरों से अलग करता था।
बावजूद इसके चिडिय़ा ने उसे वैसे ही अपनाया जैसे बाकी बच्चों को और सब एक साथ पेड़ के नीचे खेलते रहे। समय के साथ उस बच्चे ने महसूस किया कि भले ही वह दिखने में अलग हो, लेकिन वह परिवार का हिस्सा था और सब उसे बहुत प्यार करते थे। चिडिय़ा के बच्चों को भी यह बात समझ में आ गई थी कि उनकी मां ने उन्हें क्या सीख दी है।
- गौरीक, द्वितीय विजेता, उम्र- 10 वर्ष
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मां की ममता
एक जंगल में एक पेड़ के नीचे एक पक्षी परिवार रहता था। उस परिवार में एक मां पक्षी और उसके तीन अंडे थे। मां पक्षी बड़े प्यार से उन अंडों की देखभाल करती थी और वह दिन-रात उनका ध्यान रखती थी ताकि बच्चे सुरक्षित निकलें। एक दिन पहला अंडा फूटा और उससे एक छोटा पीला चूजा बाहर निकला। वह खुश था और तुरंत मां से चिपक गया। उसके बाद दूसरा अंडा भी फूटा और उसमें से हरा चूजा बाहर आया। वह भी बेहद खुश था और पेड़ के नीचे खेलने लगा।
मां पक्षी बड़े गर्व से अपने बच्चों को देख रही थी, लेकिन तीसरा अंडा सबसे बड़ा था और वह अभी तक नहीं फूटा था। मां को चिंता होने लगी। आखिरकार कुछ समय बाद तीसरे अंडे में भी दरार आई और उसमें से एक बड़ा चूजा बाहर निकला। यह चूजा बाकी दोनों से अलग था। यह बहुत बड़ा और लाल रंग का था। छोटे चूजे उसे देखकर थोड़ा घबराए, लेकिन मां पक्षी ने बड़े प्यार से उसे गले लगाया। उसने अपने सभी बच्चों को समझाया कि चाहे वे जैसे भी दिखते हों, वे सभी उसके लिए समान हैं और उन्हें मिलजुलकर रहना चाहिए। फिर सारे चूजे मिलकर खेलने लगे और परिवार खुशी-खुशी रहने लगा। मां की ममता और सभी बच्चों का प्रेम उन्हें एकजुट रखता था।
- युग यादव, तृतीय विजेता, उम्र- 13 वर्ष
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इन बच्चों की कहानियां भी सराहनीय रहीं….
सुनहरी का संसार
एक जंगल में एक पेड़ पर एक प्यारी सी चिडिय़ा रहती थी। उसका नाम सुनहरी था। उसने बहुत सारे अंडे दिए और वह अपने बच्चों को देखने के लिए बहुत उत्सुक थी। जब अंडों से बच्चे बाहर आए, तो वह उन्हें देखकर बहुत खुश हुई और उन्हें गले लगा लिया। इस पेड़ पर एक और चिडिय़ा थी, जिसने सुनहरे अंडे दिए थे।
वह चिडिय़ा भी अपने बच्चों को देखने के लिए बहुत उत्सुक थी। वह सुनहरी चिडिय़ा के बच्चों को देखकर बहुत खुश भी थी। वह सुनहरी चिडिय़ा के पास गई और कहा कि मैं भी अपने बच्चों को देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं। तुम्हारे कितने प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। तुम्हें बधाई। सुनहरी ने कहा, जल्द तुम भी प्यारे बच्चों की मां बन जाओगी। दोनों की एक अलग ही दुनिया थी।
- जयराज भटेवरा, उम्र – 8 साल
अनोखी दोस्ती
एक पेड़ पर एक चिडिय़ा रहती थी। चिडिय़ा ने पेड़ पर एक घोंसला बनाया था, जिसमें चिडिय़ा के 6 अंडे रखे हुए थे। उसी पेड़ के नीचे एक मुर्गी रहती थी। मुर्गी और चिडिय़ा दोनों में गहरी दोस्ती थी। एक दिन चिडिय़ा दाना लेने घोंसले से दूर चली गई। जब वह वापस लौटी, तो उसने देखा घोंसले से 3 अंडे गायब हैं और 3 अंडे ही रखे हुए हैं।
चिडिय़ा घबराकर इधर-उधर फडफ़ड़ाने लगी। तभी पेड़ के नीचे से आवाज आई, जो कि चिडिय़ा की दोस्त मुर्गी की थी। मुर्गी ने चिडिय़ा से कहा परेशान मत हो तुम्हारे अंडे सुरक्षित हैं। वे पेड़ से लुढ़क कर नीचे आ गए। अब वे अंडे नहीं चूजे हो गए हैं। यह नजारा देख चिडिय़ा की खुशी का ठिकाना ना रहा।
- पावनी भद्रावले, उम्र- 12 वर्ष
- अनोखा अंडा
एक समय की बात है एक गांव में विशाल बरगद का पेड़ था। उस पर विभिनन प्रकार के पक्षी प्रेम से रहते थे, पर जब भी वे भोजन की तलाश में बाहर जाते, तो कौए पीछे से उनके अंडे ले जाते थे। जिससे सभी पक्षी बहुत परेशान थे। एक दिन पक्षियों ने तय किया कि जब हम बाहर भोजन लेने जाएंगे, तो कोई दो चिडियां वहां रुककर अंडों की रखवाली करेंगी। बहुत दिन तक कौए नहीं आए। एक दिन उन दोनों चिडिय़ा की आंख लग गई और उठने के बाद उन्होंने एक बहुत बड़ा अंडा पेड़ के नीचे देखा। सभी पक्षियों के आने पर सब उस अंडे को देखते रहे, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। महीने बीत गए। सभी पक्षियों के अंडों में से बच्चे निकल आए, पर वह अंडा वैसा ही पड़ा हुआ था।
एक दिन सभी पक्षियों ने खोजना शुरू किया कि यह अंडा किसका है पर पता न चला। वे सब थककर वापस आए तो देखा कि अंडा गायब था, वे अंडे को तलाशने गए और उन्हें वह एक पेड़ के नीचे मिला। पक्षी चौंक गए और वहां से चले गए। अगले दिन वे फिर उस पेड़ पर गए जहां उन्हें अंडा मिला था पर वो अंडा फिर गायब था। आसपास के पक्षियों से पूछने पर पता चला कि ऐसा अंडा उन्हीं को दिखता है जो खतरे में हों। यह सुनकर पक्षी डर गए और जब वापस आए तो उन्होंने देखा कि उनका पेड़ कटा हुआ था और घोंसले भी गिरे हुए थे। तब उन्हें समझ आया कि यह अनोखा अंडा उन्हें दूसरे पेड़ पर जाने के लिए कह रहा था और आने वाले खतरे से सावधान कर रहा था।
- निकिता टहिलियानी, उम्र – 13 साल