साइंस डेली की रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि ओरल इम्यूनोथेरेपी के दौरान उन्होंने बच्चों को मूंगफली जैसे एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थ बहुत थोड़ी मात्रा में दिए। धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाई गई। पाया गया कि बच्चों में उनके प्रति सहनशक्ति विकसित हुई है। अब तक डॉक्टरों के पास साक्ष्य-आधारित गाइडलाइन सीमित थी। नई गाइडलाइन से उन्हें मदद मिलेगी। वे फूड एलर्जी से पीडि़त बच्चों की ओरल इम्यूनोथेरेपी बेहतर तरीके से कर पाएंगे। मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में बाल रोग विशेषज्ञ और शोध के मुख्य लेखक डगलस मैक का कहना है कि पहले कभी इस प्रक्रिया का मानकीकरण नहीं किया गया। हमें ओरल इम्यूनोथेरेपी के बारे में मार्गदर्शन की बहुत जरूरत है।
ये हैं दिशा-निर्देश 1. परिवारों को फूड एलर्जी, एनाफिलेक्सिस (गंभीर एलर्जी) और इम्यूनोथेरेपी के बारे में शिक्षित किया जाए। उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि बच्चों को खाना सही तरीके से कैसे खिलाएं।
2. बच्चों को धीरे-धीरे एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थों के संपर्क में लाना चाहिए। 3. ऐसे परिवार, जिनमें पहले भी फूड एलर्जी की समस्या रही है, उन्हें बाल रोग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में बच्चे की ओरल इम्यूनोथेरेपी करानी चाहिए।
4. ध्यान रखा जाए कि एलर्जी वाले खाद्य पदार्थ से बच्चे का संपर्क खतरनाक स्तर पर न पहुंचे। इस दौरान बच्चों में पेट दर्द और उल्टी जैसे दुष्प्रभाव आम बात है। कम कीटाणु से इम्यून सिस्टम पर असर
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब बच्चों के आसपास कम कीटाणु होते हैं तो उनका इम्यून सिस्टम मूंगफली और दूध जैसी सामान्य चीजों के खिलाफ काम करने लगता है। स्कूल में टिफिन बांटकर खाने से भी बच्चों में फूड एलर्जी का खतरा रहता है। मूंगफली से होने वाली एलर्जी ब्रिटेन, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में ज्यादा है। एशिया में गेहूं, अंडे और दूध से होने वाली एलर्जी सबसे ज्यादा है।