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जैसलमेर

सरहद पर अब ऊंट के साथ श्वान भी निभाएंगे सुरक्षा का जिम्मा

पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान से सटे जैसलमेर की करीब 470 किलोमीटर लम्बी सीमा की रखवाली के लिए तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवानों का साथ रेगिस्तान का जहाज ऊंट बखूबी दे ही रहा है।

जैसलमेरNov 15, 2024 / 08:08 pm

Deepak Vyas

jsm news
पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान से सटे जैसलमेर की करीब 470 किलोमीटर लम्बी सीमा की रखवाली के लिए तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवानों का साथ रेगिस्तान का जहाज ऊंट बखूबी दे ही रहा है। अब सीमा सुरक्षा के काम में श्वान भी अपनी भूमिका निभाना शुरू कर चुके हैं। इन जवानों के साथ जिले की कुछेक चौकियों पर विशेष तौर पर प्रशिक्षित विदेशी नस्ल के श्वान भी गश्त कर रहे हैं। सूंघने की बेजोड़ क्षमता वाले इन स्निफर डॉग्स का इस्तेमाल किसी तरह के अवांछनीय पैकेट के बारे में पता लगाने से लेकर घुसपैठ की आशंका होने पर किया जाता है। जैसलमेर के पास में ही स्थित बीकानेर में डॉग ट्रेनिंग सेंटर है। वहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जैसे-जैसे श्वान पास आउट होंगे, सीमाओं की रक्षा में उनकी तैनाती बढ़ती जाएगी। बल के सूत्रों ने बताया कि जैसलमेर जिले में अभी शुरुआती तौर पर ही कुछ सीमा चौकियों पर डॉग्स को तैनात किया गया है क्योंकि यहां अन्य बॉर्डर की तुलना में ड्रग्स आदि की बरामदगी की कम घटनाएं घटित हुई हैं। जैसे-जैसे उनकी जरूरत होगी, श्वानों का कुनबा यहां भी बढ़ाया जाएगा।

जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर को प्रशिक्षण

इस बीच मिली जानकारी के अनुसार बीकानेर में सीसुब के सेक्टर हेडक्वार्टर पर डॉग ट्रेनिंग सेंटर से 16 जर्मन शेफर्ड श्वानों की पहली यूनिट को 6 महीने का प्रशिक्षण देकर उन्हें गुजरात और राजस्थान बॉर्डर पर भेजा जा चुका है। इसके बाद अब लैब्राडोर नस्ल के श्वानों को भी वहां प्रशिक्षण दिया जा रहा है। गौरतलब है कि अभी तक श्वानों को संदिग्ध वस्तु को सूंघकर पता लगाने, खासकर आम्र्स या विस्फोटक की तलाश करने के प्रशिक्षण पर ही जोर दिया जाता रहा है। अब सीमा पार पाकिस्तान से ड्रोन से हेरोइन की तस्करी सबसे बड़ी चुनौती बन कर सामने आई है। ऐसे में एंटीड्रोन जैसी तकनीकों को अपनाने के साथ तस्करों के नेटवर्क को डी-कोड करने में इन प्रशिक्षित श्वानों की मदद ली जाएगी।

बल का पक्का साथी ऊंट

वैसे सीमा सुरक्षा बल के जवानों के लिए राजस्थान से लगती पाकिस्तान सीमा पर तैनाती के समय रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाला ऊंट आज भी सबसे पक्का साथी है। विशेषकर जैसलमेर जैसे मरुस्थलीय बॉर्डर पर तो ऊंट की पीठ पर बैठ कर ही जवान विगत कई दशकों से पेट्रोलिंग से लेकर अपनी जरूरत के अनेक काम कर रहे हैं। अकेले जैसलमेर जिले में अनुमानित 500 से ज्यादा ऊंट सीमा सुरक्षा बल के अनमोल साधन के रूप में काम आ रहे हैं। इन ऊंटों को भी कई तरह से प्रशिक्षित किया जाता है और उनकी खुराक पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

मिलती है खोजबीन में मदद

  • बल के सूत्रों ने बताया कि विदेशी नस्लों के श्वानों को इस तरह से भी प्रशिक्षित किया जाता है कि वे सीमा पर 5-7 किलोमीटर क्षेत्र में अगर कोई मादक पदार्थ पड़ा हो तो उसका पता लगा सके।
  • खोजबीन में ये श्वान बल के जवानों की मदद करेंगे। साथ ही यदि कोई स्थानीय व्यक्ति मादक पदार्थ के कूरियर के रूप में काम करेगा तो श्वान की मदद से उसकी पहचान की जा सकेगी।
  • गौरतलब है कि करीब तीन साल पहले केंद्र सरकार ने देश की सीमाओं पर बॉर्डर चौकियों में स्ट्रीट डॉग्स को प्रशिक्षण देकर काम में लेने के निर्देश दिए थे। इसे राजस्थान में कुछ सीमा क्षेत्रों में अमल में भी लाया गया था। ये श्वान आज भी बॉर्डर पर जवानों के साथ गश्त करते हैं। ऐसे श्वानों पर अतिरिक्त कोई राशि भी खर्च नहीं होती है।
  • पाकिस्तान से लगती राजस्थान की 1037 किमी सीमा पर बल के श्रीगंगानगर और बीकानेर सेक्टर में सीमा पार पाक से तस्कर आकर हेरोइन की तस्करी कर रहे हैं। हेरोइन के पैकेट ड्रोन से तस्कर भारतीय सीमा में खेतों में गिरा देते हैं। बाड़मेर में भी इस तरह की कई वारदातें सामने आ चुकी हैं।

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