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इंदौर

डोनर्स की किडनी मैच नहीं, एमपी में पहली बार हुआ ‘किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट’

Indore News: मध्य प्रदेश का पहला इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट इंदौर में किया गया।

इंदौरNov 28, 2024 / 04:18 pm

Astha Awasthi

kidney swap transplant

kidney swap transplant

Indore News: परिवार में डोनर नहीं मिलने से सही समय पर किडनी ट्रांसप्लांट न हो पाने का खामियाजा मरीज को भुगतना पड़ता है। शहर के दो डॉक्टरों ने इस समस्या का निदान इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट से निकाला है। किडनी खराब होने से दो अस्पतालों में मरीज भर्ती थे। दोनों मरीजों के परिजनों से किडनी मैच नहीं हुई, लेकिन इनके डोनर्स की एक-दूसरे के मरीजों से किडनी मैच हो रही थी।
दोनों मरीजों और डोनर्स के टेस्ट और डॉक्यूमेंटेशन प्रोसेस पूरी होने के बाद ऑथराइजेशन कमेटी से अनुमति लेकर मध्य प्रदेश का पहला इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट इंदौर में किया गया।

नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. संदीप सक्सेना (अपोलो अस्पताल) व नेफ्रोलॉजिस्ट नेहा अग्रवाल (चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर) ने यह पहल की। डॉ. सक्सेना ने बताया कि एबीओ इनकपैटिबल किडनी ट्रांसप्लांट करने पर मरीज को कई समस्याएं हो सकती हैं और खर्च भी बढ़ जाता है। इसलिए हमने आपस में बात कर अपने-अपने मरीज और डोनर की कपैटिबिलिटी को समझा और उनकी अनुमति लेकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।

मरीजों के हित के लिए एकजुट हो डॉक्टर्स

डॉ. सक्सेना ने कहा कि यदि प्रदेश के सभी डॉक्टर्स एक प्लेटफॉर्म पर काम करेंगे तो मरीजों की भलाई के लिए निर्णय लिए जा सकते हैं। इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट मिल का पत्थर साबित होगा। इससे कई जिंदगियां बचाई जा सकेंगी।
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यह था मामला

डॉ. सक्सेना के मरीज 31 वर्षीय संकेत (परिवर्तित नाम) का ब्लड ग्रुप ए प्लस जबकि उनकी पत्नी का बी पॉजिटिव है। इधर, डॉ. अग्रवाल के 47 वर्षीय मरीज रामलाल (परिवर्तित नाम) की दोनों किडनियां खराब हो चुकी थीं। उनकी मां की उम्र अधिक होने से डोनर नहीं बना सकते थे। इसके बाद उनकी पत्नी के टेस्ट किए गए, लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था। जबकि, दोनों मरीजों के डोनर्स की किडनी आपस में मैच कर रही थी।
डॉ. सक्सेना ने बताया कि ब्लड ग्रुप मैच नहीं होने पर एबीओ इनकपैटिबल किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ता है। इसमें किडनी रिजेक्शन की आशंका 5 प्रतिशत बढ़ जाती है। शरीर को विशेष दवाइयां देकर डी सेंसेटाइजेशन करना होता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए शहर के दूसरे नेफ्रोलॉजिस्ट से बात कर डोनर खोजने का फैसला लिया।

कमेटी ने मंजूरी दे दी

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि हमने दोनों मरीजों और उनके डोनर्स के सभी टेस्ट कर रिपोर्ट और दस्तावेज एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन और ऑथराइजेशन कमेटी के हेड डॉक्टर संजय दीक्षित के सामने प्रस्तुत किए। कमेटी ने मंजूरी दे दी। शर्त यह थी कि दोनों ट्रांसप्लांट एक समय पर हों, ताकि विवाद न हो। हमने एक समय पर दोनों अस्पतालों में सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किए।

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