ये भी पढ़ें: क्या आपको मालुम है गुरु पूर्णिमा का सही अर्थ? हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व ये आज से नहीं बल्कि प्राचीन वेद-ऋषियों के समय से इसकी महत्ता रही है। यह दिन ना सिर्फ बड़ों के लिए बल्कि बच्चों के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन सभी विद्यार्थियों द्वारा गुरु की पूजा की जाती है। बताया जाता है कि प्राचीन समय में जब विद्यार्थी निशुल्क गुरु से शिक्षा प्राप्त करते थे तब वह बड़ी श्रद्धा भाव से इस दिन अपने गुरुओं की पूजा किया करते थे।
हिंदू मान्यता के अनुसार गुरु बिना व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। गुरु के बिना ना तो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सकता है और ना ही आत्म मुक्ति। हमारे जीवन में गुरु की भूमिका बेहद अहम है, यूं तो इस समाज का हिस्सा कहलाते हैं लेकिन इस समाज के योग्य केवल गुरु ही बनाते हैं।
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दरअसल धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन जगत गुरु माने जाने वाले महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। इतनी ही नहीं कहा जाता है कि आज ही के दिन महर्षि वेद व्यास ने चारों वेदो की भी रचना की थी। इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास रखा गया। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।