बसपा से हुई थी करियर की शुरुआत
मिथलेश पाल की राजनीति का सफर वर्ष 1993 में बसपा पार्टी के साथ शुरू हुआ। उस दौरान उन्होंने जिला पंचायत के वार्ड चार से सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत गई। इसके बाद उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ा लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा। यहीं से मिथलेश पाल का राजनीतिक सफर शुरू हुआ। इसके बाद 1996 में उन्हें पहली बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर सदर विधानसभा से चुनाव लड़ने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने 2002 में दूसरा चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाई। बसपा से बार-बार हार का मुंह देखने के बाद उन्होंने पाला बदल लिया और रालोद के साथ हाथ मिला लिया।
इससे पहले भी जीता था उप चुनाव
रालोद के टिकट पर उन्होंने पहली बार पालिका का चुनाव लड़ा और फिर सदर सीट से 2007 में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन यहां भी उन्हें हार का ही मुंह देखना पड़ा। इसके बावजूद मिथलेश पाल ने उम्मीद नहीं छोड़ी और वह सक्रिय राजनीति में बनी रही। वर्ष 2009 में जब रालोद से मोरना विधायक कादिर राणा सांसद चुन लिए गए तो मिथलेश पाल मोरना के उपचुनाव में उतरी और कादिर राणा के भाई नूर सलीम को हराकर उन्होंने जीत हांसिल कर ली। इस बार भी मिथलेश पाल ने उपचुनाव में ही जीत हासिल की है। लंबे समय तक समाजवादी पार्टी में रही मिथलेश पाल
मिथलेशपाल समाजवादी पार्टी में भी रही। 2017 में उन्होंने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की इसके बाद उन्होंने पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाई। 2022 में सपा रालोद गठबंधन से उन्होंने चुनाव लड़ने की तैयारी की लेकिन टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गई। यह फैसला उनके लिए अच्छा रहा। अब उन्होंने एक बार फिर से मीरापुर विधानसभा सीट पर रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गई। पिछले 17 सालों में मिथलेशपाल ने रालोद के टिकट पर करीब 17 चुनाव लड़े। अब उनकी जीत के बाद रालोद समर्थकों में जोश है। उधर समाजवादी पार्टी के समर्थक और नेता इस जीत के लिए सवाल खड़े कर रहे हैं और भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं।