अपने मन की बात कहें
बच्चे अपने मन की बातों को दोस्त, परिवार के किसी सदस्य को बताएं। इससे उनका डर निकलेगा। शेयर न करने से दिक्कत बढ़ेगी। सकारात्मक रहें। लोग क्या सोचेंगे इस पर कोई ध्यान न दें। महत्त्वपूर्ण यह है कि जितना पढ़ा है वह आना चाहिए न कि ज्यादा अंक लाना। अभिभावकों को चाहिए कि अपनी महत्वाकांक्षा न थोपें। अन्य छात्रों से तुलना न करें।
खुद न बनें परीक्षक
बच्चों के साथ अभिभावक परीक्षा केंद्र तक जाएं। उसे प्रोत्साहित करें। घर आने पर उसकी मनोदशा समझें। ऐसा नहीं कि एक पेपर खत्म होने के बाद उसका दूसरा एग्जाम लेने लगें। जैसे कि क्या किया, सभी प्रश्न क्यों नहीं किए आदि। बच्चा कुछ प्रश्न हल नहीं कर सका है तो कहीं ऐसा तो नहीं कि समय कम पड़ गया हो। ऐसा है तो आप उसे बताएं कि अगर किसी एक प्रश्न का उत्तर उसे नहीं सूझता है तो वह दूसरा प्रश्न देखे। अंत में समय बचने पर उलझे हुए प्रश्न को सुलझाने का प्रयत्न करे।
– डॉ. सुनील शर्मा, मनोचिकित्सक, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर