क्या है ‘क्रायो थैरेपी’
इस थैरेपी की शुरुआत वर्ष 1978 के करीब जापान में हुई और 1984 तक ‘क्रायो-थैरेपी’ यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में पहुंच गई। थैरेपी लेने के लिए मरीज ‘स्विम-वियर’ में (जिससे शरीर का अधिकांश हिस्सा खुला रह सके) ‘क्रायो-चैंबर’ में प्रवेश करते हैं। इस चैंबर को लिक्विड नाइट्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड स्नो या डीएमईपी (डाइमेथीलेथर प्रोपैन) जैसी कई गैसों से माइनस 110 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है। मरीज को तीन मिनट तक इसमें रखा जाता है। इससे त्वचा की ऊपरी सतह थोड़ी देर के लिए जम-सी जाती है। रक्त वाहिनियां चौड़ी होकर ज्यादा ऑक्सीजन लेने लगती हैं। संवेदी कोशिकाएं स्पाइनल कॉर्ड को संवेदनाएं पहुंचाने लगती हैं और जोड़ों, मांसपेशियों व स्नायु तंत्र के रिसेप्टर्स में बदलाव होने लगता है। इससे मस्तिष्क ज्यादा क्रियाशील होकर शरीर को ठंड से बचाने के लिए ऊर्जा देने वाले व दर्द कम करने वाले रसायन एंडोर्फिन का निर्माण करने लगता है। जिससे शरीर में रक्त प्रवाह बढ़ने से तनाव व दर्द में कमी आती है।
स्तन कैंसर का इलाज
क्रायो-थेरैपी का ही एक हिस्सा है ‘आइस बॉल थेरैपी’। इसे स्तन कैंसर के उपचार में इस्तेमाल किया जाने लगा है। दरअसल, आइस बॉल थेरैपी में स्तन के भीतर छोटी-छोटी सुइयों के जरिए छिद्र करके कैंसर की गांठों में बेहद ठंडी गैसों का रिसाव किया जाता है।
अत्यधिक ठंड होने से ट्यूमर असरहीन हो जाते हैं। इसमें यह तकनीक एक तरीके से कैंसर को बढ़ाने वाले ऊत्तकों को मार देती है। जिससे इसके आगे फैलने की आशंका कम हो जाती है। इसके अलावा यह पद्धति सर्जरी कराने से कम पीड़ादायक है। एक सुखद तथ्य यह भी है कि चीन में एक महिला में अंतिम स्तर के कैंसर को भी क्रायो-थेरैपी से समाप्त किया गया है। चीनी कैंसर विशेषज्ञ मुताबिक महिला के उपचार के दौरान उसके शरीर में स्थित ट्यूमर के आसपास का तापमान माइनस 150 डिग्री कर दिया गया था। बाद में मृत ट्यूमर को सर्जरी के जरिए हटा दिया गया। सर्जरी के आठ साल बाद भी महिला में कैंसर के कोई लक्षण नहीं मिले और फिलहाल वह आराम से जीवन व्यतीत कर रही है।
त्वरित व पीड़ारहित प्रक्रिया –
क्रायोथैरेपी को निर्धारित अंतराल पर 15-20 बार दोहराने पर गठिया रोग में बेहद फायदा मिलता है। इसके अलावा ऐसे मरीजों में दवाई की आवश्यकता भी नौ गुना कम हो जाती है। जानकारों के मुताबिक गंभीर गठिया रोगी को 30 बार तक भी तीन मिनट की थैरेपी की जरूरत पड़ सकती है। इस पर एक बार में तकरीबन दो हजार रुपए तक का खर्च आता है। इस थैरेपी की प्रक्रिया पीड़ारहित और त्वरित है। ‘क्रायो थैरेपी’ से सर्दी से होने वाले रोग और अस्थमा भी ठीक हो सकता है। दरअसल प्राकृतिक सर्दी के मौसम में नमी होती है, लेकिन क्रायो-चैंबर्स की कृत्रिम ठंड सूखी होती है जिसका चिकित्सकीय प्रयोग बेहतर है। इसके अतिरिक्त इस ठंडक को आवश्यकतानुसार ही उपयोग किया जाता है। यह थैरेपी किसी भी प्रकार की सर्जरी यानी शल्य चिकित्सा का विकल्प नहीं है, लेकिन इससे कई प्रकार के गंभीर रोगों से लड़ने में मदद मिलती है।
कैलोरी होती है बर्न –
मोटापा कम करने के लिए भी क्रायो थैरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया को क्रायोपॉलिसिस कहा जाता है। दअरसल, बहुत अधिक ठंड में रहने पर शरीर में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है। इससे मेटाबॉलिजम प्रक्रिया तेज हो जाती है। जिससे एक बार में 400 से 800 तक कैलोरी बर्न की जा सकती है। मोटापे के अलावा एंग्जाइटी, अनिद्रा, मांसपेशियों के खिंचाव, पीठदर्द, हृदय सम्बंधी बीमारियों और पुराने सिरदर्द में भी क्रायोथैरेपी राहत देती है।
भारत में बढ़ता असर –
‘क्रायो-थैरेपी’ अब केवल विदेशों तक सीमित नहीं हैं। भारत में मुंबई, चेन्नई, बेंगलूरू, दिल्ली, गुडग़ांव और नोएडा सहित देश के कई शहरों में 80 से अधिक ‘क्रायो-थैरेपी’ सेंटर खुल चुके हैं। चेन्नई जैसे कुछ शहरों में जहां निजी अस्पतालों में मरीजों को ‘क्रायो-थैरेपी’ दी जा रही है, वहीं कई जगह बड़े स्पा और मसाज सेंटर में ‘क्रायो-चैंबर्स’ स्थापित हो गए हैं। इस थैरेपी के बारे में हालांकि अभी तक लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन इंटरनेट लोगों में खासी उत्सकुता जगा रहा है। नई तकनीकों से इलाज, सुंदरता और उत्तम स्वास्थ्य की चाहत जल्द ही इसे लोकप्रिय बना सकती
विशेषज्ञ की सलाह जरूरी –
हालांकि भारतीय कलाकारों में अभी इस थैरेपी को लेकर ज्यादा लगाव देखने को नहीं मिला है लेकिन हॉलीवुड में इसे अपनाने वालों की लंबी फेहरिस्त है। वैसे हाई ब्लड प्रेशर के मरीज, गर्भवती महिलाएं, अस्थमा के मरीज, शरीर के किसी भी अंग में रक्त के थक्के होने, अंगुलियों में सूजन या रक्तप्रवाह दुरुस्त न होने पर ‘क्रायो थैरेपी’ का प्रयोग बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं करना चाहिए।