इन चार जिलों में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार हैं। कांग्रेस के
पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के अलावा कई दिग्गज यहां से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लगभग आधा-आधा दर्जन से अधिक सीटों पर विभाजित एनसीपी और शिवसेना के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में अविभाजित एनसीपी को क्रमश: 13 और 11 जबकि, भाजपा को 8-8 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को 2014 में 6 और 2019 में 8 वहीं, अविभाजित शिवसेना को 9 और 5 सीटें मिली थीं।
मुद्दों से भटका चुनाव
एनसीपी और शिवसेना के विभाजन के बाद पिछले लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी ने जिस तरह छलांग लगाई है, उससे महायुति उबरने की कोशिश कर रही है। चुनाव मुख्य मुद्दों से भटका हुआ है। दोनों पक्षों की लोक-लुभावन घोषणाएं, निजी हमले, नए उछाले गए नारे और उम्मीदवारों के चेहरों के इर्द-गिर्द चुनावी नैरेटिव केंद्रित है। दो महागठबंधन की छह पार्टियों के साथ निर्दलीय और बागी उम्मीदवार चुनाव को और पेचीदा बना रहे हैं। सोलापुर, कोल्हापुर और सतारा की कई सीटों पर प्रतिशोध की भावना प्रबल है तो सांगली में बड़ी जीत के लिए एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और भाजपा के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस रणनीति तय कर रहे हैं। इन चार जिलों के चुनावी महारण में किसान और महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे। ‘असली’ साबित करने का संघर्षयहां एनसीपी और शिवसेना के दोनों गुटों के पास खोने और पानेेे के लिए बहुत कुछ है। जनता के फैसले से यह भी तय होगा कि, वह किसे असली शिवसेना या असली एनसीपी मानती हैै। लोगों से बातचीत के दौरान अधिकांश उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं। लेकिन, सतारा में शरद पवार के सामनेे चुनौतियां अधिक हैं। कभी सतारा की लगभग सभी सीटें जीतने वाले और अपने इशारे पर जीत-हार की पटकथा लिखने वाले शरद पवार विभाजन के बाद कड़े संघर्ष में हैं। कांग्रेस और भाजपा क्षेत्र पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहेेंगे। भाजपा अपने जनाधार को कितना बढ़ा पाती है या कांग्रेस लोकसभा चुनावों की सफलता को कितना दोहरा पाती है यह देखना होगा।
महाविकास अघाड़ी के मजबूत पक्ष
-एनसीपी और कांग्रेस का गढ़। यहां 50 फीसदी से अधिक सीटें जीतती हैं ये दोनों पार्टियां -लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से भाजपा को रोकने का विश्वास बढ़ा -रोजगार और फसलों के अच्छे भाव नहीं मिलने से सत्तारुढ़ महायुति के प्रति नाराजगी के भाव
कमजोर पक्ष
-कई विधानसभा क्षेत्रों में सीट बंटवारे के विवाद से उपजी बगावत, अपनी ही पार्टी के खिलाफ ताल ठोक रहे कई प्रत्याशी -तीनों दलों में आपसी समन्वय की कमी -कुछ विधानसभा क्षेत्रों में कमजोर प्रत्याशी
महायुति के मजबूत पक्ष–
मुख्यमंत्री लाडकी बहन योजना का महिलाओं के बीच प्रभाव कहीं-कहीं आधारभूत संरचना जैसे सडक़ों आदि के विकास से लोग प्रभावित लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा और संघ के कार्यकर्ता झोंक रहे पूरी ताकत
कमजोर पक्ष–
बेरोजगारी के मुद्दे पर महायुति के प्रति नाराजगी के भाव कुछ क्षेत्रों में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति के भाव एक हैं तो सेफ के नारे से रिवर्स ध्रुवीकरण