मंदिर समिति ने दिए थे नियम
प्राप्त जानकारी अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आरओ वॉटर जल से प्रतिमा को स्नान कराने जैसा कोई फैसला नहीं दिया है, सिर्फ इतना कहा है कि मंदिर की पूजा पद्धति में कोई दखलंदाजी नहीं की जाए। मंदिर समिति ने जो पूर्व में नियमावली बनाकर भेजी थी, उसी पर काम करें। मूर्ति क्षरण को लेकर जो नियम समिति ने बनाए हैं, उसी पर कार्य करें। सारिका गुरु ने जो स्वहित की याचिका लगाई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था कि मूर्ति क्षरण को कैसे रोका जाए।
यह है पूरा मामला
प्राप्त जानकारी अनुसार कोर्ट में सारिका गुरु की याचिका खारिज हो चुकी है। सबसे पहले जस्टिस मोदी ने पुजारियों के खिलाफ निर्णय दिया था। जिसे लेकर पुजारी डबल बेंच हाईकोर्ट गए थे, जहां जस्टिस मोदी के निर्णय को खारिज कर दिया गया था। इस जजमेंट में जो मूल चीजें थीं, इसमें पुजारियों को 3५ प्रतिशत मिलता है उस पर आपत्ति थी, पुजारियों के प्रतिनिधियों पर आपत्ति थी, पुजारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति के अलावा ऑडिट संबंधित आपत्तियां थीं। डबल बैंच में कहा गया था कि पुजारियों को जो परंपरानुसार मिल रहा है, इनकी जो पुरानी व्यवस्था है, इनको लेकर कोई आपत्ति नहीं है। इस निर्णय के खिलाफ सारिका गुरु ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप अपने स्वयं के लाभ के लिए यहां आए हैं, आपके पति को पुजारी नहीं बनाया, इसलिए आए हो, आपने मंदिर का हित कहां देखा। यदि मंदिर का हित देखते तो मूर्ति की क्षरण वाली बात लिखते, आपने नहीं लिखी। तो कोर्ट ने कहा कि अब इस मैटर को हम संज्ञान में लेते हैं। कोर्ट द्वारा चार लोगों की कमेटी गठित की गई। इस टीम ने मंदिर का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद मंदिर समिति की एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट के आधार पर मंदिर समिति से कहा गया कि आप इस रिपोर्ट पर क्या कर सकते हैं, तो समिति ने निर्णय लेकर कुछ नियम बनाए, जिसमें शुद्ध जल चढ़ाएंगे, आधा लीटर जल चढ़ाएंगे, शुद्ध दूध-दही से पंचामृत होगा आदि। इन नियमों को मंदिर के बाहर बोर्ड लगाकर अंकित भी किया गया है। इसे कोर्ट में प्रस्तुत किया गया, तो सारिका गुरु ने इस पर आपत्ति ली। तो कोर्ट ने इनकी यह मांग भी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि मंदिर समिति ने जो नियम बनाए हैं, उसे ही लागू किया जाएगा। अभी कोर्ट ने किसी तरह का जजमेंट नहीं दिया है।