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दर्जनों एनिकट बने है बांध भरने में रोडा, डेढ़ दशक में चार बार हुआ लबाबल, दो बार चली चादर

माशी बांध डेढ दशक में केवल चार बार ही लबालब हुआ है। वहीं दो बार चादर चली है। इसका मुख्य कारण जलभराव करने वाली नदियों के रास्ते में रोककर बनाए हुए दर्जनों एनिकट है।
 

टोंकAug 10, 2020 / 09:03 am

pawan sharma

दर्जनों एनिकट बने है बांध भरने में रोडा, डेढ़ दशक में चार बार हुआ लबाबल, दो बार चली चादर

दर्जनों एनिकट बने है बांध भरने में रोडा, डेढ़ दशक में चार बार हुआ लबाबल, दो बार चली चादर

पीपलू (रा.क.). क्षेत्र की समृद्धि खुशहाली का प्रतीक माशी बांध डेढ दशक में केवल चार बार ही लबालब हुआ है। वहीं दो बार चादर चली है। इसका मुख्य कारण जलभराव करने वाली नदियों के रास्ते में रोककर बनाए हुए दर्जनों एनिकट है। इससे बांध भराव क्षमता के आंकड़े को प्रतिवर्ष छूने में विफल रहने लगा है।
माशी बांध पर 2011 के बाद वर्ष 2019 में पानी आवक क्षेत्र में अच्छी बारिश होने से दर्जनों एनिकटों के बावजूद यह छलक गया था तथा चादर चली थी। गत वर्ष करीब 7 सालों बाद माशी बांध में भराव क्षमता 10 फीट के मुताबिक फुल भरकर चादर चली थी। इस बांध के भरने से क्षेत्र के 29 गांवों के लोगों को फायदा मिलता हैं।
जिनमें लोहरवाड़ा, आजमपुरा, संदेड़ा, अब्बासनगर, मोहम्मदनगर, अलीमपुरा, बलखंडिया, काशीपुरा, नाथड़ी, ढूंढिया, मुमाणा, निमेड़ा, मालीपुरा, पांसरोटिया, कुरेड़ा, कुरेड़ी, देवरी, गहलोद, अलीनगर, किशनपुरा, इस्लामपुरा, मारखेड़ा, मुंडिया, डोडवाड़ी, गाता, गुढारामदास, कचोलिया, औंकारपुरा के करीब 30 हजार से अधिक लोगों को फायदा मिलेगा। किसानों को सिंचाई के लिए नहर से पानी मिलेगा।

सिंचाई विभाग की जेईएन शिवांगी गोयल ने बताया कि मासी बांध 9 अगस्त 2020 तक 130 मिमी ही बारिश दर्ज की गई है। गत वर्ष 9 अगस्त 2019 तक 440 एमएम बारिश हो चुकी थी। गत वर्ष कुल 829 एमएम बारिश दर्ज की गई थी। जबकि सामान्य बारिश 600 मिमी होती है।
इस बार के मानसून में बांध में पानी की आवक नहीं हुई है, लेकिन फिलहाल डेड स्टोरेज में गत वर्ष का पानी बचा हुआ हैं। क्षेत्र के किसान प्रदेश में जिस तरह कई इलाकों में मानसून मेहरबान हैं उसी तरह से माशी बांध के लबालब होकर चादर चलने की उम्मीद लगाएं बैठे हैं।

बांध का निर्माण पीपलू व निवाई तहसीलों की सीमा पर माशी, बांडी, खेराखशी नदियों का पानी रोककर १९६० में पीपलू क्षेत्र के २9 गांवों की २८ हजार एकड़ भूमि को नहरों के जरिए सिंचित करने, निवाई की पेयजल समस्या को हल करने सहित जलीय जीवों का पालन करने को लेकर किया गया था।
बांध पर 725 फीट लम्बी चादर बनी होने सहित 16 गुणा 8 फीट के पांच गेट लगे हुए है। जो बांध 1971 में अधिक पानी की आवक होने पर टूट गया था। इसके बाद फिर से बांध की मरम्मत की गई। बांध की 1981 में 11 फीट ऊंचाई की चादर चली थी। इस बांध में 1700 लाख घन फीट बरसाती जल संग्रहित होता है, जिसमें से 1240 लाख घनफीट पानी का उपयोग पीपलू तहसील की सिंचाई तथा शेष संग्रहित 46 0 लाख घनफीट पानी का उपयोग निवाई तहसील मुख्यालय को पेयजल आपूर्ति करने एवं जलीव जीव, मत्स्य पालन में कई वर्षों से हो रहा है, लेकिन बांध के कैचमेंट एरिया में पिछले डेढ़ दशक से लगातार बनाए गए एनिकटों के कारण इसमें बरसाती पानी की आवक रुकी है।
कब कितना आया पानी
माशी बांध 1991 से लेकर 1999 तक लगातार फुल रहा है। वर्ष 2001 से 2003 बांध में प्रतिवर्ष करीब ढाई फीट, 2004 में 9 फीट, 2005 से 2009 तक करीब 2.95 फीट, वर्ष 2010 में बांध लबालब तथा चादर चली, 2011 में पूरा भरा, 2012 से लेकर 2018 तक बांध नहीं भर पाया। गत वर्ष बांध भरने के बाद कई दिनों तक हल्की चादर चली थी।
माशी नदी कैचमेंट एरिया में जयपुर जिले के पारली, निमेड़ा, मेहंदवास, गोकुलपुरा, मोहनपुरा, समेलिया, मंडप, चांदमा खुर्द, देवजी की नाड़ी, मण्डावरा, छापरी तथा बांडी नदी पर, बीजलपुरा गांवों के समीप एनीकट बने हैं। सहायक नदियां बांडी व खेराकशी में भी कई एनीकट निर्माण हुए हैं।
नहरों पर निर्भर किसान

माशी बांध से पीपलू क्षेत्र में गहलोद तक 40 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर व दर्जनों वितरिकाएं बनी हुई है। ऐसे में नदी तल से 16 फीट ऊंचाई पर बने शून्य बिन्दू से 10 फीट भराव क्षमता वाले माशी बांध के भरने से इन नहरों में पानी छोड़ा जाता है, तो क्षेत्र में 6985 हैक्टेयर जमीन पर रबी की फसल में सिंचाई की जाती है। जिससे क्षेत्र का किसान समृद्ध व खुशहाल होता है। लेकिन गत डेढ दशक में बांध चार बार ही पूरा भरा है।

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