वंदे मातरम् व जय हिंद बोलने के लिए कौन मना करता है, वंदे मातरम् बोलने में क्या बुराई है। यह तो देश में कुछ लोगों द्वारा गलत फहमियां फैला दी जाती हैं। देश में चुनाव आते हैं तो इस तरह की बातें होने लग जाती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने संसद में कव्वाली पेश करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं खुश नसीब हूं, मुझे देश के लिए गाने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि कव्वाली खुदा की इबादत होती है, फिल्मी दुनिया मनोरंजन की दुनिया है, वह कव्वाली से पूरी अलग है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता हूं।
चांद कादरी ने कहा कि देश में कव्वाल विद्या कभी कम नहीं हो सकती है। कव्वाली खुदा की इबादत के लिए की जाती है। देशभक्ति के सवाल पर उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान गद्दार नहीं हो सकता है, देश को जब भी जरूरत पड़ेगी तो मुसलमान सबसे आगे खड़ा मिलेगा।
उन्होंने कहा कि सूफीवाद हमेशा भाईचारा सिखाता है, कबीर से लेकर जो भी सूफी संत हुए हंै उन्होंने यह बात सिखाई है कि वतन से मोहब्बत करो तो इस देश में जिसने जन्म लिया है उसकी भक्ति करना तो उसका फर्ज है।
कुल की रस्म के साथ उर्स सम्पन्न
फतेहपुर. सद्भावना सौहार्द की मिसाल आस्ताने आलिया आफ्ताबे शेखावाटी हजरत ख्वाजा हाजी मोहम्मद नजमूद्दीन सुलेमानी चिश्ती अल फारूकी के 152 वें सालाना उर्स का गुरुवार को कुल की रस्म के साथ समापन हो गया। सज्जादानशीन व मुतवल्ली पीर गुलाम नसीर साहब ने देश में अमन व चैन की दुआ मांगी।
इससे पहले रात को पूरी रात दरगाह में कव्वाली पेश की गई। ख्वाजा नजमुदीन चिश्ती सुलेमानी की खिदमत में कलाकारों ने एक से बढ़कर एक कव्वाली पेश किए। देर रात को महशुर कव्वाल चांद अफजली ने एक से बढ़कर एक कलाम पेश किए।
रातभर दरगाह में जायरीनों की भीड़ रही। सुबह कुल की महफि़ल शुरू हुई इसमें दरगाह के पगड़ीबन्ध क़व्वाल सईद लतीफ जयपुरी ने रंग व कड़का पढ़ कर आस्था के रंग बिखेरे। दोपहर को फातिहा ख्वानी की रस्म के साथ उर्स का विधिवत समापन हुआ।
उर्स के दौरान मुम्बई, दिल्ली, यूपी, एमपी, अहमदाबाद, मकराना, अजमेर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा, कोटा, उदयपुर, पाली, नागौर, बीकानेर, चूरू, जोधपुर सहित देश भर से सभी धर्मों के हज़ारों लोग जिय़ारत के लिए भारी तादाद में आए जायरीनों का वापस लौटना शुरू हो गया।