महल में होली खेलता था राजपरिवार
इतिहासकार गोकुल चंद गोयल ने बताया कि पुराने समय में रणथम्भौर के राजपरिवार के लोग अपने महल में होली खेलते थे। इस दौरान राज परिवार की हाथी, घोड़े, ऊंट आदि पर सवारी भी निकलती थी और राजा व राजपरिवार के अन्य सदस्य सवारी में शामिल होते थे। यह सवारी पूरे नगर का भ्रमण करती थी। इस दौरान मार्ग में फूलों व रंग की बारिश की जाती थी।
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फूलों से तैयार होता था रंग
पुराने समय में आज की तर्ज पर मशीनों से तैयार होने वाले गुलाल और रंग उपलब्ध नहीं होते थे। ऐसे में राजमहल में पलाश, केसू व पल्लव अन्य फूलों को पानी में भिगोकर विशेष रंग तैयार किया जाता था। कई बार इन रंगों को सुगंधित करने के लिए गुलाब के फूलों व खस से तैयार विशेष प्रकार के इत्र का उपयोग भी किया जाता था। ताकि रंगों में अच्छी सुगंध बनी रहे।
महिलाओं के लिए होती थी अलग व्यवस्था
रणथम्भौर दुर्ग में रियासतकालीन समय में होली के अवसर पर महिलाओं के होली खेलने के लिए अलग से प्रबंध किए जाते थे। महिलाओं की ओर से पर्दे में रहकर अलग से होली खेली जाती थी। राव हम्मीर के शासन के बाद कभी-कभी यवन व जयपुर राजघराने के शासकों के रणथम्भौर आने पर होली खेली जाती थी।
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रखे जाते थे रंग से भरे पात्र
इतिहासकार प्रभाशंकर उपाध्याय ने बताया कि किवदंती के अनुसार पुराने समय मेें नगर के प्रमुख चौराहों पर रंग से भरे बड़े- बड़े पात्र रखे जाते थे। इनसे राज परिवार के साथ नगरवासी भी होली का आनंद लेते थे। इसके बाद शाही लावजमा वापस महल की ओर लौट आता था।