मन में अन्तश्चिति और बहिश्चिति के भेद से दो बलों का चयन या जमाव होता है इसको चिति कहते हैं। इनमें अविद्या के बलों का संचय बहिश्चिति कहा जाता है और विद्या बलों का संचय अन्तश्चिति कहा जाता है।
सृष्टि में अव्यय ही अक्षर व क्षर रूप में परिणत हो रहा है। अव्यय पुरुष की आनन्द, विज्ञान, मन, प्राण और वाक् पांच कलाएं हैं। इनमें सबसे पहले मन का निर्माण होता है। कामस्तदग्रे समवर्तताधि रूप में सर्वप्रथम मन और उसके बाद कामना का उद्भव बताया गया है। मन में रस और बल दोनों तत्त्व हैं जिन्हें क्रमश: आनन्द और क्रिया शक्ति कहते हैं। इस प्रकार मन में आनन्द भी है और क्रिया भी। मन में अन्तश्चिति और बहिश्चिति के भेद से दो बलों का चयन या जमाव होता है इसको चिति कहते हैं। इनमें अविद्या के बलों का संचय बहिश्चिति कहा जाता है और विद्या बलों का संचय अन्तश्चिति कहा जाता है। मन में जब अन्तश्चिति होने लगती है तो प्रथमत: विज्ञान और उसके बाद आनन्द का विकास होता है। अर्थात् विज्ञान मन से तथा आनन्द विज्ञान से सूक्ष्म है। बलों की अत्यन्त न्यूनता के कारण आनन्द रसप्रधान कहलाता है। मन के साथ आनन्द और विज्ञान कलाएं बन्धन को खोलने वाली मुक्तिसाक्षी कलाएं हैं। बहिश्चिति में मन में प्राण और उसके बाद वाक् का निर्माण होता है।