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सृष्टि का प्रत्येक अंग पूर्ण

इस संसार वृक्ष का न आदि है, न अन्त है। अत: इस दृढ़मूल वृक्ष को अनासक्तिरूप शस्त्र से काटकर परमात्मा की शरण में जाना चाहिए ताकि संसार में लौटकर न आना पड़े।

Sep 02, 2022 / 09:21 pm

Patrika Desk

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इस संसार वृक्ष का न आदि है, न अन्त है। अत: इस दृढ़मूल वृक्ष को अनासक्तिरूप शस्त्र से काटकर परमात्मा की शरण में जाना चाहिए ताकि संसार में लौटकर न आना पड़े।
श्रीमद्भागवत पुराण में अश्वत्थ का निरूपण करते हुए वेदव्यास कहते हैं कि यह संसार एक सनातन वृक्ष है। इस वृक्ष का आश्रय प्रकृति है। इसके दो फल हैं-सुख और दु:ख। इसकी तीन जड़ें हैं-सत्, रज और तम। चार रस हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसके जानने के पांच प्रकार हैं-श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, रसना और नासिका। इसके छ: स्वभाव हैं-पैदा होना, रहना, बढऩा, बदलना, घटना, और नष्ट हो जाना। इस वृक्ष की छाल हैं सात धातुएं-रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र। आठ शाखाएं हैं-पांच महाभूत, मन, बुद्धि, और अहंकार। इसमें मुख आदि नौ द्वार हैं। प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनञ्जय-ये दस प्राण ही इसके दस पत्ते हैं। इस संसाररूप वृक्ष पर दो पक्षी हैं-जीव और ईश्वर।
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