रिजर्व बैंक के लिए खाने-पीने के सामान में महंगाई चिंता की बात बनी हुई है। हालांकि फरवरी के 8.6 फीसदी से घटकर यह अगस्त में 5.66 फीसदी हो गई है। केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि सितंबर में खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल के बावजूद आने वाले महीनों में कीमतों में कमी आएगी, क्योंकि अच्छे मानसून के कारण देश में कृषि उत्पादों की स्थिति बेहतर होगी और खाद्यान्न भंडार भी भरा रहेगा। शीर्ष बैंक को अंतरराष्ट्रीय अशांति (इजरायल-गाजा-ईरान, रूस-यूक्रेन) और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण अर्थव्यवस्था के लिए विपरीत हालात पैदा होने की भी आशंका है। मध्य-पूर्व में संघर्ष बढऩे पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है और विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। जाहिर है भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। रिजर्व बैंक यही कर रहा है। अब यदि अनुमान के अनुसार अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति दर घटकर 4.3 फीसदी रह जाती है तो माना जाएगा कि महंगाई दर मोटे तौर पर नियंत्रित है।
रिजर्व बैंक ने इस साल विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया हो जो अन्य रेटिंग एजेंसियों से ज्यादा है। उदाहरण के लिए, आइसीआरए ने भारत के विकास की दर 7 फीसदी तो क्रिसिल ने 6.8 फीसदी रहने की उम्मीद की है। दुनिया में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें और तेजी से विकास करना होगा और इसके लिए सबसे जरूरी यही है कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई जाए और इसके लिए ब्याज दरों में कटौती करना भी एक तरीका है। मौद्रिक नीति समिति की बैठक में इसका रास्ता खुलता हुआ दिख रहा है।