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बेरोजगारों को ‘लाभार्थी’ नहीं, कामगार बनाएं

हालांकि केंद्र सरकार ने कुछ कौशल योजनाओं का पुनर्गठन किया गया है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। यह अल्पकालिक राहत ठीक है पर गरीबों और बेरोजगारों को केवल ‘लाभार्थी’ बनाने के बजाय उन्हें ‘कामार्थी’ (कामगार) बनाने के लिए ऐसे कौशल से सशक्त करना होगा जिसकी वैश्विक बाजार में मांग हो।

जयपुरOct 11, 2024 / 08:20 pm

Gyan Chand Patni

दिनेश सूद
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के प्रशिक्षण सहभागी
रोजगार सृजन व कौशल विकास पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। असल में नई पीढ़ी का कौशल विकास 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार साबित होगा। नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, प्रत्येक युवा को देश के विकास में महत्त्वपूर्ण हितधारक बनाने के लिए स्कूल के समय से ही उनको कौशल से सशक्त करने पर जोर दे रही है। अब शिक्षा सिर्फ स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम तक ही सीमित नहीं रही। बदलते वैश्विक बाजार और डिजिटल क्रांति के कारण सीखने का दायरा व्यापक हो गया है। बाजार-संचालित कौशल हासिल करने से युवाओं को रोजगार के बेहतरीन अवसर मिलेंगे और विकसित भारत के लिए आधार तैयार होगा।
हालांकि केंद्र सरकार ने कुछ कौशल योजनाओं का पुनर्गठन किया गया है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। यह अल्पकालिक राहत ठीक है पर गरीबों और बेरोजगारों को केवल ‘लाभार्थी’ बनाने के बजाय उन्हें ‘कामार्थी’ (कामगार) बनाने के लिए ऐसे कौशल से सशक्त करना होगा जिसकी वैश्विक बाजार में मांग हो। नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों के अनुसार 15 से 59 आयुवर्ग के 86 प्रतिशत लोगों ने कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है जबकि शेष 14 प्रतिशत ने विभिन्न औपचारिक और अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। बचे लोगों के लिए कौशल युक्त समर्पित शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
यह साबित करने के पर्याप्त सबूत हैं कि युवाओं को कुशल बनाने से आय में वृद्धि, उच्च लाभप्रदता और अर्थव्यवस्था में अधिक गतिशीलता लाई जा सकती है। नई शिक्षा नीति में 2035 तक व्यावसायिक शिक्षा युक्त उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है। इसे हासिल करने के लिए इस नीति में उच्च शिक्षा संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़कर विषयों के रचनात्मक संयोजन के साथ लचीला पाठ्यक्रम, व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ एकीकृत करने और उचित प्रमाणीकरण का प्रावधान है। छात्रों को सर्वोत्तम संभव शिक्षा प्रदान करने के लिए आइआइटी और आइआइएम के बराबर बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान विश्वविद्यालय स्थापित करने की जरूरत है।
 वर्ष 2050 तक स्कूल और उच्च शिक्षा के माध्यम से 50 प्रतिशत शिक्षार्थियों को व्यावसायिक अनुभव प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। प्रत्येक बच्चे को कम से कम एक व्यवसाय सीखना चाहिए और दूसरे व्यवसायों से भी परिचित होना चाहिए। भारत का शिक्षा का नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े शिक्षा नेटवर्क में से एक है। इसे और बेहतर बनाने की आवश्यकता है। इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण सुधारों को लागू करने में निरंतर ठोस प्रयासों, इच्छाशक्ति और दृढ़ता की आवश्यकता है। देश भर के प्रत्येक हाई स्कूल में कौशल केंद्र स्थापित करने और व्यावसायिक शिक्षकों की भर्ती करने के लिए निवेश की जरूरत है।
स्कूलों से तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों को जोडऩा होगा। भविष्य में विकसित देश बनने की आकांक्षा रखने वाले भारत के लिए शिक्षा प्रणाली में निवेश बढ़ाना कोई बड़ी बात नहीं है। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ बचपन से ही कौशल प्रशिक्षण देना महत्त्वपूर्ण है ताकि वे उद्यमिता में रुचि विकसित कर सकें। यह उन्हें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, रियल टाइम एनालिटिक्स आदि जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों से अवगत कराएगा। स्वचालन और डेटा विनिमय चौथी औद्योगिक क्रांति के मूल में हैं। इसलिए हमें अपने युवाओं को तदनुसार प्रशिक्षित करने की जरूरत है। अनौपचारिक क्षेत्र भारत की लगभग 93 प्रतिशत कामकाजी आबादी को रोजगार देता है पर नौकरी से निकाले जाने का खतरा हर वक्त बना रहता है। इस खतरे को कम करने की खातिर हाशिए पर रहने वाले लोगों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों चैनलों के माध्यम से शामिल करने की आवश्यकता है। सामान्य सेवा केंद्र अंतिम छोर तक मदद कर सकते हैं, जबकि उपयोगकर्ता के अनुकूल स्थानीय भाषा के जरिए विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी और कौशल चाहने वालों को लाभ पहुंचा सकते हैं। एक अभिनव और समावेशी दृष्टिकोण के साथ ‘टैलेंट नोड’ 5 से 8 करोड़ लोगों को उनके कौशल और आकांक्षाओं से मेल खाने वाले बेहतर नौकरी के अवसर ढूंढने में मदद कर सकता है।
देश में नवप्रवर्तकों और उद्यमियों को तैयार करने के लिए संज्ञानात्मक कौशल, विकास मानसिकता, सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता और डिजिटल साक्षरता सरकारी, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों सहित सभी हितधारकों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा और भारत के विकास में मदद मिलेगी।

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