पहली बात यह समझनी होगी कि रूस ने दावा किया है कि एमआरएनए तकनीक से कैंसर वैक्सीन पहली बार बनाई गई है, ऐसा नहीं है। एमआरएनए तकनीक पर अमरीका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिलिस और ब्रिटेन के नॉर्थ वेस्ट बायो थेरेप्यूटिक सेंटर्स में पहले से ही इस तरह के वैक्सीन विकसित की जा चुकी है। इसकी घोषणा फरवरी 2022 में हो चुकी है। ये वैक्सीन कैंसर ट्यूमर को नियंत्रित करने में कुछ हद तक कारगर भी रही हैं। इससे पहले भी एमआरएनए तकनीक से कोविड -19 वैक्सीन (मोडर्ना) बन चुकी है। इस तरह के वैक्सीन्स में संबंधित बीमारी के हल्के वायरस होते हैं, जिन्हें मरीज के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। इससे शरीर में उस बीमारी के प्रति इम्यूनिटी विकसित होती है और वायरस शरीर में अधिक संख्या में पनप नहीं पाता, जिससे बीमारी गंभीर नहीं होती है।
रूस के दावे में नई बात पर्सनलाइज्ड कैंसर वैक्सीन (यानी हर मरीज के अलग वैक्सीन) है। हालांकि, इसके बारे में विस्तार से पूरे रिसर्च का डेटा मौजूद नहीं है। इस पर अब तक कोई रिसर्च भी जर्नल्स में प्रकाशित नहीं हुआ है। यदि मीडिया में चल रही बातों को मानें, तो इस वैक्सीन को बनाने के लिए संबंधित मरीज से कैंसर के कुछ सेल्स निकाले जाएंगे और उसे एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का इस्तेमाल कर कुछ घंटों में ही लैब में तैयार कर वैक्सीनेशन बनाई जाएगी और फिर मरीज को दी जाएगी। अगर ऐसा हुआ और वैक्सीन भी कारगर रही तो यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। लेकिन इसके साथ जो सवाल हैं, जिनके जवाब रूस के वैज्ञानिकों ने नहीं दिए हैं, वे काफी महत्वपूर्ण हैं।
पहली बात, अब तक कहा जा रहा है कि वैक्सीन का प्री-क्लिनिकल ट्रायल किया गया है। इसके बाद भी एक और चरण होता है। प्री-क्लिनिकल ट्रायल में एनिमल मॉडल पर या बहुत कम लोगों पर सेफ्टी और असर को लेकर रिसर्च किया जाता है। रूस से जारी जानकारी में कहीं भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि ट्रॉयल एनिमल या ह्यूमन मॉडल पर किया गया। यदि अगले चरण (यानी बड़े स्तर पर ज्यादा लोगों पर) में भी इसकी पुष्टि होती है, तो इसके बाद ही मरीजों को दिया जाएगा। दूसरी बात, रूस के वैज्ञानिकों ने यह नहीं बताया है कि अगर क्लिनिकल ट्रायल हुई तो कितने लोगों पर रिसर्च किया गया है, जबकि रिसर्च में संख्या बहुत मायने रखती है। तीसरी बात, कैंसर के कई प्रकार होते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि किन-किन प्रकार के कैंसर पर इसका ट्रायल किया गया है। चौथी बात, यह वैक्सीन किस ग्रेड (स्टेज) में कितनी असरकारी होगी, यह भी स्पष्ट नहीं है। वैक्सीन की क्षमता पहले ग्रेड में कितनी होगी और चौथे ग्रेड में कितनी होगी, यह भी महत्वपूर्ण सवाल है। भारत में वर्ष 2023 में करीब 15 लाख कैंसर की पहचान हुई थी, जिनमें से 50-60 प्रतिशत मामलों की पहचान तीसरे या चौथे ग्रेड में हुई थी। ऐसे में भारत जैसे देश के लिए यह वैक्सीन कितनी कारगर होगी, यह भी स्पष्ट नहीं है।
अंत में और विशेष बात, विश्व के वैज्ञानिक समुदाय अभी भी रूस के इस कैंसर वैक्सीनेशन के बारे में बहुत सतर्क है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और अन्य प्रमुख स्वास्थ्य संस्थाओं ने रूस के इस दावे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, क्योंकि यह तकनीक अभी शुरुआती चरणों में है। कैंसर जैसी जटिल बीमारी का इलाज करने के लिए किसी भी नई दवा या वैक्सीन को वैश्विक मानकों पर पूरी तरह खरा उतरना चाहिए। रूस के इस कैंसर वैक्सीन के बारे में अब तक प्रकाशित आंकड़े और शोध पारदर्शी नहीं हैं, जिससे वैज्ञानिकों के बीच संदेह की स्थिति बनी हुई है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, रूस की इस वैक्सीन को लेकर अधिक डेटा और शोध की आवश्यकता है, ताकि यह साबित किया जा सके कि यह कैंसर के खिलाफ एक वास्तविक, विश्वसनीय और प्रभावी उपचार हो सकता है। फिलहाल, यह कहना बहुत जल्दी होगा कि यह वैक्सीन भविष्य में कैंसर के इलाज में एक बड़ा कदम साबित होगी या नहीं।