Patrika Opinion : कार्यस्थलों पर बढ़ाना होगा ‘आधी आबादी’ का भरोसा
कामकाजी महिलाओं की कार्यस्थल पर सुरक्षा हमेशा चिंता का विषय रही है। ऐसा इसलिए भी कि यौन अपराध ही नहीं बल्कि कार्यस्थल पर यौन हिंसा का भय भी महिलाओं को उनके क्षेत्र में काम करने में आड़े आता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा में कोताही बरतने पर सख्त रवैया अपनाते हुए […]
कामकाजी महिलाओं की कार्यस्थल पर सुरक्षा हमेशा चिंता का विषय रही है। ऐसा इसलिए भी कि यौन अपराध ही नहीं बल्कि कार्यस्थल पर यौन हिंसा का भय भी महिलाओं को उनके क्षेत्र में काम करने में आड़े आता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा में कोताही बरतने पर सख्त रवैया अपनाते हुए अब केन्द्र व सभी राज्य सरकारों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ रोकने के लिए बने कानूनी प्रावधानों का सख्ती से अमल करने को कहा है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए जिला समिति व शी-बॉक्स पोर्टल बनाने के निर्देश देकर शीर्ष कोर्ट ने एक तरह से यह भी संकेत दिया है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा आश्वस्त करने के लिए जिम्मेदारों का मौजूदा रवैया बेपरवाही भरा है।
चिंता की बात यह है कि प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट (पोश) कानून लागू होने के दस वर्ष बीत जाने के बावजूद कार्यस्थलों पर ऐसा माहौल बनाने के लिए अदालतों को समय-समय पर दखल करना पड़ रहा है जिसमें महिलाएं खुद को सुरक्षित, सम्मानित और उत्पीडऩ, भेदभाव व शारीरिक नुकसान से मुक्त महसूस करे। दस साल में जो बदलाव आया है उसमें अब बड़ी तादाद में महिलाएं चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आईटी, टेलीकॉम और दूसरे कई क्षेत्रों की कंपनियों में काम कर रही हैं। इनका देर शाम व रात की पारी में काम करना भी आम है।
शीर्ष अदालत ने पोश कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए समय सीमा 25 मार्च तय करते हुए सरकारों से अनुपालना रिपोर्ट भी मांगी है। सरकारी, गैर सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के ज्यादातर दूसरे उपक्रमों में यौन उत्पीडऩ की सुनवाई के लिए आंतरिक शिकायत समितियां बनी जरूर हैं लेकिन सिर्फ कागजों में। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि कानून की पालना कराने की व्यवस्था का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता और संबंधित अधिकारी सकारात्मक रुख नहीं अपनाते तो पोश कानून कभी सफल नहीं होगा। कानूनी प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेदारी संबंधित संस्थानों की जरूर है, पर सबसे ज्यादा जरूरत निगरानी की है कि पालना हो रही है या नहीं। शी-बॉक्स पोर्टल पर दर्ज होने वाली शिकायतों और इन पर कार्रवाई पर भी निगरानी रखनी होगी, अन्यथा यह पोर्टल औपचारिक बन कर रह जाएगा। अहम बात यह भी है कि न केवल कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण बल्कि महिलाओं के लिए अलग सुरक्षित व स्वच्छ शौचालय और सुरक्षित परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में व्यापक काम भी कार्यस्थलों पर ‘आधी आबादी’ को भरोसा दिलाने वाला होगा।
Hindi News / Prime / Opinion / Patrika Opinion : कार्यस्थलों पर बढ़ाना होगा ‘आधी आबादी’ का भरोसा