Opinion : लोकतंत्र के मंदिर में ऐसा आचरण क्यों?
हमारे माननीय सांसद देश के लिए नीतियां व कानून-कायदे बनाते हैं और वक्त-बेवक्त इनकी दुहाई भी देते नहीं थकते। संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के मान-अपमान से उपजा विवाद संसद की गरिमा को तार-तार करने वाली घटना का रूप ले ले तो चिंता होना स्वाभाविक है। संसद परिसर में हुई धक्का-मुक्की की घटना के बाद […]
हमारे माननीय सांसद देश के लिए नीतियां व कानून-कायदे बनाते हैं और वक्त-बेवक्त इनकी दुहाई भी देते नहीं थकते। संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के मान-अपमान से उपजा विवाद संसद की गरिमा को तार-तार करने वाली घटना का रूप ले ले तो चिंता होना स्वाभाविक है। संसद परिसर में हुई धक्का-मुक्की की घटना के बाद सियासी उबाल आ गया है और सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप में जुटे हैं। गुरुवार को हुई इस घटना को किसी सामान्य विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। जो कुछ हुआ वह संसद के अनुशासन और गरिमा के विपरीत तो है ही, भविष्य को लेकर भी इसे चिंताजनक ही कहा जाएगा। हमारी संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। ऐसे में हमारे माननीयों से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे अपना आचरण वैसा ही रखें जैसा आराधना स्थलों पर करते हैं।
चिंता इस बात की है कि देश की शीर्ष अदालत और राज्यों के हाईकोर्ट जब-तब तीखी टिप्पणियां हमारे विधायकों-सांसदों के आचरण को लेकर करते रहे हैं, लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ। जब कानून बनाने वाले जनप्रतिनिधि ही कानून का मखौल उड़ाते नजर आएं तो भला फिर दोष किसको दें? हमारी विधायिकाएं जनता की आवाज बुलंद करने का मंच है। यह अपेक्षा की जाती है कि हमारे जनप्रतिनिधि जनता के हितों की चिंता करेंगे और उसके अनुरूप ही काम करेंगे। लेकिन पिछले सालों में जनप्रतिनिधियों का जिस तरह का आचरण सामने आने लगा है वह स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं कहा जा सकता। यह इसलिए भी कि संसद हो या फिर विधानसभाएं, हर बार सत्र शुरू होने से पूर्व सर्वदलीय बैठकों में हमारे ये प्रतिनिधि आपसी सौहार्द की जितनी बातें करते हैं उनका एक अंश भी पूरा होता नहीं दिखता। सत्ता पक्ष और विपक्ष को एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह माना जाता है। लेकिन जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से शत्रु की तरह से व्यवहार करने लगें तो हंगामा और मारपीट के ऐसे हालात बनते देर नहीं लगती।
पूरे मामले को लेकर भाजपा व कांग्रेस नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी है और पुलिस की क्राइम ब्रांच जांच कर रही है। समूचे घटनाक्रम में दोष किसका था और किसका नहीं, यह तथ्य भी जांच में सामने आ ही जाएगा। संसद परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों से यह पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं। सबसे बड़ा सवाल हमारे माननीयों के आचरण का है। कोई चाहे सत्ता पक्ष में हो या फिर विपक्ष में, कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं है। जो कुछ हुआ वह फिर नहीं दोहराया जाना चाहिए। रहा सवाल विरोध प्रदर्शन का उसके दूसरे शांतिपूर्ण उपाय भी हैं।
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