उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबले को एक ऐसा वाद्य बना दिया, जो सिर्फ संगीत का साधन नहीं, बल्कि एक कहानी कहने का माध्यम बन गया। वे घोड़े की टाप, ट्रेन की आवाज, भगवान शंकर के डमरू, शंख और घंटी जैसी अनकों ध्वनियों को तबले से निकालने में सिद्धहस्त थे। ये प्रयोग न केवल उनके कौशल को दर्शाते थे, बल्कि उनकी रचनात्मकता और संगीत के प्रति जुनून को भी दिखाते थे। उनकी प्रस्तुतियां श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थीं और उनके साथ गहरा जुड़ाव स्थापित करती थीं। उनकी सोलो प्रस्तुतियां जितनी अद्भुत होती थीं, उतनी ही जब वे संगत करते थे, तो मुख्य कलाकार को हमेशा प्राथमिकता देते थे। यही वजह है कि संगीत जगत में हर कलाकार उनका नाम सम्मान के साथ लेता है। एक बार चेन्नई में जब मैं मंच पर प्रस्तुति दे रहा था, तब जाकिर साहब ने तबले पर संगत की। उनकी सादगी और विनम्रता ऐसी थी कि मुझे कभी महसूस नहीं हुआ कि मेरे साथ दुनिया का महानतम तबला वादक मंच साझा कर रहा है। वे छोटे कलाकारों को भी उतना ही सम्मान देते थे, जितना बड़े कलाकारों को। वे हमेशा संगीत धर्म का पालन करते थे और पुराने उस्तादों की बंदिशों को सुनाने से पहले उनका नाम जरूर लेते थे।
उनकी यही बहुमुखी प्रतिभा उन्हें ग्रैमी अवॉर्ड तक ले गई। वे पहले भारतीय तबला वादक थे, जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार ४ बार मिला। अंतिम ग्रैमी अवॉर्ड जनवरी 2024 में मिला था। अमरीका में रहते हुए उन्होंने वहां के संगीतज्ञों के साथ फ्यूजन तैयार किए, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिली। जाकिर साहब श्रोताओं की नब्ज पहचानते थे। वे कहते थे कि ‘समय के साथ न बहो। संगीत में रम जाओ तो श्रोता खुद ही संगीत का आनंद लेने लगेंगे।’ उनकी मंच पर मौजूदगी ऐसी होती थी कि श्रोता उनसे आंखें हटाने में असमर्थ रहते थे।
अहमदाबाद में पिछले 45 वर्षों से संगीत फेस्टिवल ‘सप्तक’ चलता है। एक से 13 जनवरी के बीच आयोजन होता है। जाकिर साहब हर बार इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अमरीका से आते थे। यहां न केवल अपनी प्रस्तुति देते थे बल्कि श्रोतों से मिलकर उनसे बातें करते थे, उनके साथ फोटो भी खिचवाते थे। सबसे खास बात वे नए कलाकारों के लिए भी अलग से समय निकालते थे। वह चाहते थे तो कम समय का हवाला देकर इन सबसे बच जाते, लेकिन उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं किया। शादी के बाद वे अमरीका में रहने लगे थे, लेकिन वे नियमित रूप से अपने मुंबई के पुश्तैनी घर पर आते रहे थे।