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Opinion : जंगलों की कटाई पर हर हाल में अंकुश जरूरी

ऐसे दौर में, जब पर्यावरण विशेषज्ञ दुनियाभर में घटते जंगलों पर चिंता जता रहे हों, भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की ताजा रिपोर्ट ने थोड़ी राहत दी है। इसके मुताबिक 2021 से 2023 तक भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र 1,445 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। देश को हरा-भरा रखने में मध्य प्रदेश सबसे आगे […]

जयपुरDec 22, 2024 / 09:50 pm

Sanjeev Mathur

ऐसे दौर में, जब पर्यावरण विशेषज्ञ दुनियाभर में घटते जंगलों पर चिंता जता रहे हों, भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की ताजा रिपोर्ट ने थोड़ी राहत दी है। इसके मुताबिक 2021 से 2023 तक भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र 1,445 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। देश को हरा-भरा रखने में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। रिपोर्ट के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में भी दो साल पहले के मुकाबले हरियाली बढ़ी है। इससे संकेत मिलते हैं कि देश में कई साल से जारी सामाजिक वानिकी, वन उत्सव और वृक्षारोपण जैसी योजनाओं का असर दिखने लगा है। रिपोर्ट में यह तथ्य चिंताजनक है कि उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र घटा है। इसके कारणों की समीक्षा के साथ इन राज्यों में वनों के संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान देने की जरूरत है।
राष्ट्रीय स्तर पर वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र का दायरा बढऩे के बावजूद पारिस्थितिक संतुलन की दृष्टि से लक्ष्य फिलहाल काफी दूर है। देश की वन नीति के हिसाब से कुल भौगोलिक क्षेत्र में 33 फीसदी हिस्सेदारी वन क्षेत्र की होनी चाहिए। एफएसआइ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक यह हिस्सेदारी 25.17 फीसदी तक ही पहुंची है। एफएसआइ ने सर्वेक्षण रिपोर्ट की शुरुआत 1987 में की थी। तब से अब तक यह हिस्सेदारी करीब दो फीसदी ही बढ़ी है। हर दो साल में जारी होने वाली रिपोर्ट में वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र में घटत-बढ़त होती रहती है। कुल भूमि के मुकाबले वनों के अनुपात का ग्राफ ज्यादा ऊपर नहीं उठता। जाहिर है, दुनिया के दूसरे देशों की तरह जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण भारत में भी जंगल प्राकृतिक तौर पर फल-फूल नहीं पा रहे हैं। विकास परियोजनाओं और खनन के लिए जंगलों की कटाई बड़ी समस्या है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर चिंता जताता रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कटाई से हर साल करीब एक करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र घट रहा है। दो साल पहले एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दस साल में देश के 52 टाइगर रिजर्व के वन क्षेत्र में 22.62 वर्ग किलोमीटर की कमी आई। यानी जहां बाघ रहते हैं, वहां भी जंगल सिकुड़ रहे हैं। पूर्वोत्तर में हाइवे और एयरपोर्ट बनाने के लिए वनों की कटाई की गई। जंगलों की कटाई से होने वाले नुकसान की भरपाई सिर्फ वृक्षारोपण से नहीं की जा सकती। ऐसा इसलिए क्योंकि जंगल कटने के कारण प्रकृति की लय बिगडऩे से नए खतरे सिर उठाते हैं। ऐसे में मानव सभ्यता को इन खतरों से बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर जंगलों की रक्षा की दूरगामी रणनीति बनाना जरूरी है।

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