गौरतलब है कि खरीफ की नकदी फसल मानी जाने वाली नरमे की फसल में किसान को कम लागत में अच्छा मुनाफा मिल जाता है। जिसके कारण गत सालों में इसकी बुवाई को अधिक तरजीह दे रहे थे और नरमा बुवाई का क्रेज बढने के कारण इसकी बुवाई प्राथमिकता से कर रहे थे। गत वर्षों में मौसम की फसल पर मार और इस बार उम्मीद के मुताबिक भाव न मिलने से किसान मायूस है।
पिछले वर्ष गुणवत्ता में पिछड़े, इस वर्ष भावों में स्थानीय व्यापारियों के अनुसार पिछले वर्ष नरमा-कपास का उत्पादन कम हुआ था एवं गुणवता भी गिरी थी। कई तरह के रोग फसल में लगने से प्रति बीघा उत्पादन में कमी आई थी। इस बार क्षेत्र में नरमा-कपास की फसल की गुणवत्ता थोडी ठीक है, लेकिन प्रति बीघा उत्पादन उम्मीदों के अनुरूप नहीं हो सका। साथ ही इस बार बाजार भाव गत वर्ष से बढे हैं, लेकिन किसानों की उम्मीदों को नहीं छू पाए। किसानों ने बताया कि गत वर्षों में नरमा के औसत बाजार भाव साढ़े आठ हजार रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे, जबकि गत वित्तीय वर्ष में नरमे के औसत बाजार भाव साढ़े छह हजार रुपए प्रति क्विंटल के आसपास ही रहे। ऐसे में किसानों को इस वर्ष नरमे के बाजार भाव बढऩे की उम्मीद थी, जिसके चलते क्षेत्र के किसानों ने इस बार सितंबर महीने में नरमा-कपास की आवक होने के बाद भी दीपावली पर्व पर नरमा-कपास की फसल की बिक्री नहीं की। भावों की वृद्धि की उम्मीद लगाए रहे। अब इंतजार के बाद भी औसत बाजार भाव करीब साढे सात हजार के लगभग ठहरे हुए हैं तो किसान अब नरमा-कपास की फसल बिक्री के लिए बाजार में लेकर पहुंचने लगे हैं।
बुवाई और उत्पादन में लगातार हो रही कमी सहायक निदेशक सांख्यिकी के आंकडों के अनुसार नरमे की बुवाई में दो सालों में गिरावट दर्ज की गई है। जिसके कारण उत्पादन पर भी असर देखने को मिला है। गत सालों में असमय हुई वर्षा के साथ फसल में हुए नुकसान के अलावा किसान को अच्छे भाव नहीं मिलने से किसान दो साल से प्याज सहित अन्य फसलों को विकल्प के रूप में बुवाई कर रहे हैं। इस बार भी किसानों को अच्छे भावों की उम्मीद थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक भाव नहीं मिले है। इस बारे में संबंधित अधिकारियों से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई।
गत सालों में बुवाई और उत्पादन पर एक नजर वर्ष बुवाई उत्पादन हेक्टेयर में मीट्रिक टन में 2021 55619 26054 2022 45271 19148 2023 22314 11005 2024 17079 8795
नोट- वर्ष 2023 और 2024 का बुवाई और उत्पादन का आंकडा जिला परिसीमन के बाद बने नए अलवर जिले के है।