रेवड़ी कल्चर चुनावी हथकंडा, देश के विकास में बाधक
रेवड़ी कल्चर एक चुनावी हथकंडा है, जो तात्कालिक लाभ देने के बावजूद दीर्घकालिक रूप से देश की आर्थिक प्रगति में बाधा डालता है। राजनीतिक दलों को मुफ्त की घोषणाओं से आगे बढ़कर दीर्घकालिक विकास योजनाओं की दिशा में काम करना चाहिए। आत्मनिर्भरता और सतत विकास के मार्ग को अपनाना ही भारत के लिए लाभकारी है। आम जनता को भी यह बात समझनी होगी।
राजेन्द्र राठौड़
पूर्व नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधानसभा
देश में चुनावी मौसम आते ही फ्रीबीज यानी मुफ्त सेवाओं और सुविधाओं की घोषणाएं की जाती हैं। इस तरह की घोषणाएं अक्सर तात्कालिक लाभ तो देती हैं, लेकिन दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टिकोण से यह देश की वित्तीय स्थिति पर भारी बोझ डालती हैं। वर्ष 2047 तक आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के रास्ते में यह रेवड़ी कल्चर एक बड़ी बाधा है।
हिमाचल प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए रेवडिय़ां बांटने की घोषणाएं की थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को मंत्रियों व विधायकों से दो महीने का वेतन भत्ते छोडऩे की अपील करनी पड़ी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद मार्च 2024 तक करीब 87 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है जिसके मार्च 2025 तक 95 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। हिमाचल प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 300 यूनिट फ्री बिजली, महिलाओं को 1500 रु प्रति माह सहित अन्य लोकलुभावनी घोषणाएं की थीं जिसका नकारात्मक प्रभाव अब दिख रहा है। यहां प्रति व्यक्ति कर्ज 1 लाख 17 हजार रुपए पहुंच गया है। कर्ज और खर्च के असंतुलन ने सरकार को इतना लाचार कर दिया है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन तक सरकार समय से नहीं चुका पाई। कर्नाटक और पंजाब में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। ठेकेदारों का 25,000 करोड़ रुपए का बकाया चुकाने में सिद्धारमैया सरकार की असमर्थता की वजह से कई विकास परियोजनाएं ठप्प होने के कगार पर हंै।
पंजाब में तो हालात और भी गंभीर हैं, जहां राज्य का सार्वजनिक ऋण जीएसडीपी का 44.12 फीसदी हो गया है। मुफ्त बिजली बांटने की वजह से राज्य के अस्सी फीसदी घरेलू उपभोक्ता मुफ्त बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसका सीधा असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। लगातार बढ़ता राजस्व घाटा और बड़ी होती देनदारियां राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही हंै। विकास योजनाएं तो दूर, इन राज्यों में कर्मचारियों को वेतन व सेवानिवृत्त कर्मियों को समय पर पेंशन देने में मुश्किलें आ रही है। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक व पंजाब की स्थिति से अन्य राज्यों को भी सबक लेना चाहिए और रेवड़ी कल्चर पर लगाम लगानी चाहिए। राजस्थान में गत कांग्रेस सरकार ने बिना बजटीय प्रावधान के थोथी घोषणाओं को प्रोत्साहित करके राजस्थान की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया था। महंगाई राहत कैंप लगाकर मुफ्त बिजली, मुफ्त स्मार्टफोन जैसी फ्रीबीज घोषणाओं के साथ वोट की फसल काटने के लिए बिना बजटीय प्रावधानों के महाविद्यालय, विद्यालय, चिकित्सालय व हजारों किलोमीटर सड़कें बनाने की थोथी घोषणाएं और अपने असंतुष्ट नेताओं की खुशामदी के लिए एक साथ 19 नए जिले व मनमाफिक तहसीलें तक बना डालीं। इन सबके बावजूद कांग्रेस शासन में नहीं आ सकी। भाजपा सरकार को 5.79 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम कर्ज विरासत के रूप में मिला। फ्रीबीज का वादा करना राजनीतिक दलों के लिए आसान है, क्योंकि इससे उन्हें लगता है कि जनता का समर्थन हासिल करने में मदद मिलेगी। परन्तु यह भी सत्य है कि ऐसी योजनाओं की लागत भविष्य में जनता को ही चुकानी पड़ती है।
फ्रीबीज के बजाय, सरकारों को दीर्घकालिक जनकल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित हो सके। मुफ्त योजनाओं पर निर्भरता बढ़ाने के बजाय, आत्मनिर्भरता और विकास को प्रोत्साहित करना ही देश को एक समृद्ध और सशक्त भविष्य की ओर ले जाएगा। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह मुफ्त संस्कृति एक अभिशाप बनती जा रही है। सच भी है कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आज भी इस स्थिति में है कि कथित तौर पर मुफ्त या सस्ती चीजें उसके वोट के फैसले को प्रभावित करती हैं।
रेवड़ी कल्चर एक चुनावी हथकंडा है, जो तात्कालिक लाभ देने के बावजूद दीर्घकालिक रूप से देश की आर्थिक प्रगति में बाधा डालता है। राजनीतिक दलों को मुफ्त की घोषणाओं से आगे बढ़कर दीर्घकालिक विकास योजनाओं की दिशा में काम करना चाहिए। आत्मनिर्भरता और सतत विकास के मार्ग को अपनाना ही भारत के लिए लाभकारी है। आम जनता को भी यह बात समझनी होगी।
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