एग्जिट पोल सटीक निकले तो ये भाजपा के लिए जोर के झटके से कम नहीं माना जाएगा। लोकतंत्र में जनता का फैसला शिरोधार्य होता है, लेकिन यदि भाजपा को पराजय का स्वाद चखना पड़ता है तो सवाल तो खड़े होंगे ही कि आखिर लोकसभा चुनाव के निराशाजनक नतीजों का सिलसिला पार्टी तोड़ क्यों नहीं पाई, खासकर जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में। पांच साल पहले जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने अनुच्छेद ३७० हटाकर पार्टी के दशकों पुराने वादे को पूरा कर दिखाया था। तमाम विरोध के बावजूद भाजपा ने ये संदेश देने की कोशिश की थी कि जम्मू-कश्मीर अब देश की मुख्यधारा से जुड़ जाएगा। आज आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि अनुच्छेद ३७० हटाने का फायदा भाजपा को मिला या नहीं।
जम्मू-कश्मीर पर देश ही नहीं, दुनिया की निगाहें भी लगी हैं। चुनावी नतीजों का संदेश दूर तक जाना तय है और इसका असर देर तक भी नजर आएगा। नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस अकेले बहुमत पाते हैं या भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सरकार बनाने का दावा पेश करती है, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए भी और देश के लिए भी इस वक्त यह सबसे बड़ा सवाल माना जा सकता है और जनता इस सवाल का जवाब जल्द से जल्द जान लेना चाहती है। जम्मू-कश्मीर में किसी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला तो जोड़-तोड़ के नजारे देखना भी दिलचस्प रहेगा। नतीजों की गूंज अगले महीने होने वाले महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव तक सुनाई देती रहेगी।