scriptनुकसान पहुंचाने वालों को न मिले सरकारी लाभ | Those who cause harm should not get government benefits | Patrika News
ओपिनियन

नुकसान पहुंचाने वालों को न मिले सरकारी लाभ

बैंकिंग प्रणाली में किसी भी व्यक्ति का मात्र पैन नंबर डालकर उसका सिबिल स्कोर देखा जा सकता है। सिविल खराब होने पर कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान उस व्यक्ति को ऋण नहीं देता, इस कारण से जितने भी ऋण लेने वाले हैं, वे चाहते हैं कि समय पर ऋण का भुगतान करें एवं डिफाल्टर नहीं हों। इसी कारण पिछले कुछ वर्षों से बैंकों की वित्तीय स्थिति में भी सुधार आया है। सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधियों के डेटा को भी पैन कार्ड या आधार नंबर या अन्य आधारभूत सूचनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।

जयपुरOct 08, 2024 / 08:22 pm

Gyan Chand Patni

Indian Railway

Indian Railway

विजय गर्ग
आर्थिक विशेषज्ञ और भारतीय एवं विदेशी कर प्रणाली के जानकार
पि छले दिनों देश के अलग-अलग राज्यों में रेलवे ट्रैक पर भारी वस्तु रखकर ट्रेनों को डिरेल करने की कोशिशों ने भारत सरकार के लिए एक नया सिरदर्द उत्पन्न कर दिया है। ये न केवल सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले मामले हैं, बल्कि इससे रेल यात्रा को लेकर लोगों में अविश्वास भी पैदा होता है आंदोलनों में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है। देश की सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना देशद्रोह की घटना से कम नहीं है। इस तरह का कृत्य करने वालों के खिलाफ कानून तो मौजूद हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं को देखकर यही प्रतीत होता है कि इन कानूनों का भय ही नहीं है।
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य से नुकसान पहुंचता है तो उसे पांच साल तक जेल अथवा जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कई अवसरों पर इस कानून को अपर्याप्त करार दिया है। अपने दिशा-निर्देशों के माध्यम से इस अंतराल को भरने का प्रयास किया है। वर्ष 2007 में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के चलते सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पूर्व जस्टिस के.टी. थॉमस और वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया था।
वर्ष 2009 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं दोनों समितियां की सिफारिशों के आधार पर दिशा-निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने एक बात यह भी कही थी कि धरना-प्रदर्शन से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिए क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा। हालांकि, पिछले वर्ष केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023 के अपडेटेड वर्जन में आतंकवाद से निपटने वाली धारा 113 में संशोधन किया था। आतंकी कृत्यों में देश की आर्थिक सुरक्षा और मौद्रिक स्थिति पर हमले भी शामिल किए गए हैं। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सख्ती दिखा चुका है। नागरिक संशोधन एक्ट (सीएए) के खिलाफ देश में कई विरोध-प्रदर्शनों के दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार दिया जा सकता है, लेकिन सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। वैसे, इसी साल फरवरी में देश के विधि आयोग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को तभी जमानत दी जाए, जब उनसे नुकसान के बराबर की धनराशि वसूल ली गई हो। विधि आयोग ने यह भी कहा था कि विरोध प्रदर्शनों, सार्वजनिक स्थलों और सड़कों पर लंबे समय तक अवरोध पैदा करने वालों के खिलाफ भी एक कानून बनाने की आवश्यकता है। विधि आयोग ने यह माना गया था कि प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट से संबंधित अपराध मामलों में दोष सिद्ध और सजा का डर अपराधियों को सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने से रोकने में कारगर साबित नहीं हो रहा है। विधि आयोग ने ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए एक अलग कानून बनाने की राय भी व्यक्त की। यह भी कहा कि भारतीय न्याय संहिता के मौजूदा प्रावधानों में आवश्यक संशोधन भी किया जा सकता है। सरकार ने भले ही कानून को पहले से थोड़ा सख्त किया है, लेकिन अभी और सख्ती की गुंजाइश दिखती है। कानून के तहत सख्ती का एक उदाहरण बैंकिंग प्रणाली में देखा जा सकता है। जब देश में कहीं भी किसी व्यक्ति को लोन देना होता है तो बैंक उसका सिबिल स्कोर देखते हैं। यदि सिबिल स्कोर खराब होता है तो उस व्यक्ति को कोई भी फाइनेंशियल ऑर्गेनाइजेशन लोन नहीं देता है। देश की सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों पर ऐसी ही दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। जो व्यक्ति देश की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उन्हें सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाए। न उन्हें कोई बैंक लोन दे, न उन्हें मुफ्त राशन मिले, न ही उन्हें कोई पेंशन मिले और न स्कॉलरशिप। उन्हें वोट देने के अधिकार से भी वंचित किया जाए। यह व्यवस्था उनके पूरे परिवार पर लागू की जाए।
बैंकिंग प्रणाली में किसी भी व्यक्ति का मात्र पैन नंबर डालकर उसका सिबिल स्कोर देखा जा सकता है। सिविल खराब होने पर कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान उस व्यक्ति को ऋण नहीं देता, इस कारण से जितने भी ऋण लेने वाले हैं, वे चाहते हैं कि समय पर ऋण का भुगतान करें एवं डिफाल्टर नहीं हों। इसी कारण पिछले कुछ वर्षों से बैंकों की वित्तीय स्थिति में भी सुधार आया है। सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधियों के डेटा को भी पैन कार्ड या आधार नंबर या अन्य आधारभूत सूचनाओं से जोड़ा जाना चाहिए। यह डेटा ऑनलाइन उपलब्ध होना चाहिए। अपराधी का पैन नंबर या आधार कार्ड नंबर डालते ही यह पता चल जाए कि उसने देश की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। यदि ऐसा कानून भारत सरकार बनाती है तो यह एक क्रांतिकारी कदम होगा। अभी कुछ दिनों की सजा और जुर्माने से अपराधी खास भयभीत नहीं हैं। जब परिवार सहित सभी सरकारी सहायता एवं सुविधाओं से वंचित कर दिए जाएंगे, तब वे सरकारी संपत्तियों के नुकसान के बारे में कभी सोचेंगे भी नहीं। सरकारी संपत्तियां देश के नागरिकों से मिले टैक्स से बनती हैं। इनको बचाना जरूरी है। यह समय की मांग है कि इनको बचाने के लिए भारत सरकार और सख्त कदम उठाए। इससे लोगों में एक नया विश्वास पैदा होगा।

Hindi News / Prime / Opinion / नुकसान पहुंचाने वालों को न मिले सरकारी लाभ

ट्रेंडिंग वीडियो