दरअसल, लोकसभा चुनाव के नतीजों से माना जा रहा था कि भाजपा कमजोर हो गई है। इसका नुकसान हरियाणा के साथ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में होगा। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के पहले चरण में हरियाणा जीत कर भाजपा ने बता दिया है कि वह बेहद ही सिस्टेमेटिक तरीके से चुनाव लड़ रही है। उसको कमजोर मानने की गलती प्रतिद्वंद्वियों को भारी पड़ सकती है।
हरियाणा में चुनाव से पहले चुनाव प्रभारियों को नियुक्त कर उनसे लगातार फील्ड में काम करवाया गया। इसी तरह झारखंड की जिम्मेदारी कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सरमा को दी हुई है। इन दोनों नेताओं ने पिछले दिनों दौरे कर भाजपा का एनआरसी, बांग्लादेशी घुसपैठियों से आदिवासियों के नुकसान का एजेंडा सेट करना शुरू कर दिया है।
वहीं महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे हो चुके हैं। जबकि चुनाव को लेकर इंडिया ब्लॉक की तैयारी अधिक नहीं दिख रही है। इंडिया ब्लॉक का जोर रणनीति बनाने से ज्यादा सीट बंटवारे पर फोकस है। इसके चलते जनता के बीच खुद के एजेंडे को धारदार तरीके से नहीं रख पा रहे हैं।
सरकार को मिलेगी मजबूती
हरियाणा में जीत का असर केन्द्र सरकार की कार्यशैली पर भी दिखने वाली है। पिछले कुछ महीनों में कई फैसलों के मामलों में मोदी-3 सरकार कमजोर दिखी थी। अब जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास लौटने से सरकार के कामकाज में भी बदलाव दिख सकता है।
नतीजों से कांग्रेस को लेना होगा सबक
इंडिया ब्लॉक का गठन लोकसभा चुनाव के लिए किया गया था। कांग्रेस ने बड़ी संख्या में अपनी सीटों की कुर्बानी देकर गठबंधन को सफल बनाया था। यही वजह है कि गठबंधन की कुल सीटें 234 तक पहुंची। गठबंधन में साथ रहते हुए भी आप से कांग्रेस का हरियाणा में सीट बंटवारा नहीं हो सका। इस तरह की नौबत से बचने के लिए ब्लॉक में शामिल सभी सहयोगी दलों को महाराष्ट्र व झारखंड में सीट बंटवारे का पेच जल्द सुलझा कर अपने प्रचार और रणनीति पर ध्यान देना होगा।
ध्रुवीकरण अब सिर्फ धर्म या जातिगत नहीं
हरियाणा के चुनाव ने एक बात और साफ कर दी है कि चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण सिर्फ धर्म या जाति के आधार पर नहीं हो रहा है। बल्कि भाजपा ने हरियाणा जैसे राज्य में तरीके से गैर जाटवाद का नारा देकर अन्य सभी जातियों को एकजुट करने का जोखिम उठाया। इसमें वे सफल हुए। अब महाराष्ट्र व झारखंड में कुछ इसी तरह के प्रयोग हो सकते हैं।