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समय पूर्व जन्मे बच्चों की नेत्र जांच शीघ्रता से करवाएं

सभी मिलकर विश्वभर से उपचार योग्य अंधता के उन्मूलन के लिए साझा प्रयास करें। विश्वभर से उपचार योग्य अंधता के उन्मूलन के लिए हम सभी को मिलकर जन सामान्य को नेत्रों की सुरक्षा के प्रति सचेत करना होगा। साथ ही सरकार को नेत्र रोगों के निदान व उपचार के लिए सुविधाएं देश के छोटे गांवों मेें भी उपलब्ध करवानी होगी।

जयपुरOct 10, 2024 / 10:04 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. सुरेश पांडेय वरिष्ठ चिकित्सक और कई पुस्तकों के लेखक

आंखों के महत्त्व को सभी जानते हैं। इसलिए आंखों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना सभी के लिए आवश्यक है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह के दूसरे गुरुवार को विश्व दृष्टि दिवस का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष 10 अक्टूबर को मनाए जाने वाले वल्र्ड साइट-डे की थीम है ‘लव योर आइज किड्स।’ नवजात बच्चों के नेत्रों में भी गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी विश्वभर में छोटे बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी नवजात शिशुओं के आंख के पर्दे को प्रभावित करने वाली एक विशेष बीमारी है। यह समय से पहले (37 सप्ताह से पूर्व) जन्म लेने बच्चों में हो सकती हैे। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (आरओपी) विश्वभर में बच्चों में होने वाली अंधता का प्रमुख कारण है। जिन बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पहले हुआ है, उनके पर्दे की विस्तृत जांच जन्म के दो से तीन सप्ताह में कराई जानी चाहिए। साथ ही जिन बच्चों का जन्म 30 सप्ताह से पहले हुआ है अथवा जिनका वजन 1200 ग्राम से कम है, उनकी जांच जन्म के पन्द्रह से बीस दिन के बीच करवाई जानी चाहिए।
रेटिनल स्क्रीनिंग में आरओपी का पता चलने पर आंख के पर्दे का लेजर, क्रायोथैरेपी, इंजेक्शन एवं आंख के पर्दे की शल्य चिकित्सा द्वारा इलाज करके बीमारी के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 35 लाख प्री टर्म बच्चों का जन्म होता है एवं यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है। देश में छोटे बच्चों की चिकित्सा सुविधाओं एवं नियोनेटल केयर के बढऩे के कारण अब प्री मैच्योर बच्चों की जान बचाना अब संभव हो रहा है। समाज में जागरूकता बढ़ाकर, शिशु रोग विशषज्ञों एवं नेत्र विशेषज्ञों के साझा प्रयासों से रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। कम्प्यूटर, स्मार्टफोन एवं अन्य डिजिटल डिवाइसेज के लम्बे उपयोग के कारण आंखों में सूखापन, चुभन होना, लाली होना, सिरदर्द होना आदि समस्याएं भी तेजी से बढ़ रही हैं, जिसे ‘डिजिटल विजन सिन्ड्रोम’ कहा जाता है। डिजिटल विजन सिन्ड्रोम से बचने के लिए कम्प्यूटर उपयोग करने वाले व्यक्ति 20-20-20 नियम का पालन करें। कम्प्यूटर को 20 इंच की दूरी पर रखें तथा कम्प्यूटर पर कार्य करने के उपरान्त 20 मिनट बाद 20 फीट दूरी पर रखी वस्तुओं को 20 सैकण्ड तक देखें। इस व्यायाम से आंखों की मांसपेशियों को शिथिल रखने में सहायता मिलती है। साथ ही साथ कम्प्यूटर के लम्बे उपयोग के कारण आंखों में तनाव, सिरदर्द आदि लक्षण नहीं होते हंै। आंखों को स्वस्थ रखने के लिए हरी सब्जी, फल का प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें एवं दिनभर में 8-10 गिलास पानी पीएं। वर्ष में दो बार कुशल नेत्र विशेषज्ञों से अपनी आंखों की नियमित जांच करवाएं। बच्चे किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य धरोहर हैं। जीवन में सीखने एवं प्रगति पथ पर आगे बढऩे के लिए आंखों का अतिमहत्त्वपूर्ण योगदान है।
विश्व नेत्र दिवस की थीम ‘लव योर आइज किड्स’ के अनुसार आइए हम सप्ताह में एक दिन डिजिटल डिटॉक्स (डिजिटल उपवास) का अभ्यास करने के लिए बच्चों को प्रेरित करें। इसके लिए अभिभावक खुद भी इस तरह का अभ्यास करें। साथ ही सप्ताह में एक दिन कुछ घंटों के लिए सपरिवार प्रकृति के सान्निध्य में बिताएं। हम सभी अपनी आंखों से प्रेम ही नहीं करें, इनके स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक रहें। सभी मिलकर विश्वभर से उपचार योग्य अंधता के उन्मूलन के लिए साझा प्रयास करें। विश्वभर से उपचार योग्य अंधता के उन्मूलन के लिए हम सभी को मिलकर जन सामान्य को नेत्रों की सुरक्षा के प्रति सचेत करना होगा। साथ ही सरकार को नेत्र रोगों के निदान व उपचार के लिए सुविधाएं देश के छोटे गांवों मेें भी उपलब्ध करवानी होगी। इसके लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, जिला अंधता निवारण समिति के साथ-साथ नेत्र चिकित्सक संस्थाओं के माध्यम से नेत्र चिकित्सकों, नेत्र चिकित्सा सहायक (ऑप्टोमेट्रिस्ट), विजन काउंसलर आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करवानी होगी। देश से उपचार योग्य अंधता का उन्मूलन बहुत जरूरी है। लाइन्स क्लब, रोटरी क्लब एवं अन्य स्वयं सेवी संस्थाएं इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

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