दरअसल कोरोना वायरस के ओमिक्रोन वैरिएंट के मामले में कोविशील्ड, कोवैक्सीन और दोनों के मिश्रण की खुराक ले चुके लोगों में एंटीबॉडी का स्तर 6 महीने के बाद घटने लगता है। ऐसे में अध्ययन में ये पाया गया कि इससे बचाव के लिए वैक्सीन का बूस्टर डोज जरूरी है।
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ये अध्ययन राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), पुणे में किया गया है। इस रिसर्च में ये संकेत मिला है कि, ओमिक्रॉन के घातक वैरिएंट BA.2 से टक्कर के लिए कोरोना वैक्सीन का बूस्टर डोज लगवाना चाहिए।
एनआईवी में वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव के मुताबिक डेल्टा और अन्य चिंताजनक स्वरूप के मामले में पहली खुराक में कोविशील्ड और दूसरी खुराक में कोवैक्सीन दिए जाने पर अच्छे नतीजे मिले। इस रिसर्च का निष्कर्ष जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है।
वैक्सीनेशन स्ट्रेटजी में बदवाल पर जोर
एनआईवी के अध्ययन के वैक्सीनेशन की रणनीति में बदलाव पर जोर दिया गया है। दरअसल रिसर्च के तहत तीन श्रेणियों में टीके के प्रभाव का आकलन किया गया और परीक्षण के तहत सभी लोगों की करीबी तौर पर निगरानी की गई।
रिसर्च से पता चला कि ओमिक्रॉन के मामले में टीकाकरण उपरांत बनी प्रतिरोधी क्षमता छह महीने बाद कमजोर होने लगी। इससे टीकाकरण रणनीति में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है।
इस वजह से भारत में ओमिक्रॉन से राहत
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव ने कहा, हमें पता था कि महामारी आ रही है और भारत को इससे निपटने के लिए संसाधनों को जमा करना होगा। भारत में कम मृत्यु दर के साथ कोविड का ओमिक्रॉन वैरिएंट बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं था।
इसके पीछे बड़ी वजह बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन और जीनोम सिक्वेंसिंग ऐसे कारण थे, जिसकी वजह से हम ओमिक्रॉन को खतरनाक होने से रोकने में सक्षम रहे।
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