उन्होंने कहा, नियम कहता है कि जब शिक्षण संस्थान यूनिफॉर्म बदलना चाहता है तो उसे छात्रों के अभिभावक को एक साल पहले नोटिस जारी करना पड़ता है। ऐसे में हिजाब पर प्रतिबंध है तो माता-पिता को एक साल पहले इसको लेकर सूचित करना चाहिए।
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वकीलः अकेले हिजाब को मुद्दा क्यों बना रही सरकार
वरिष्ठ वकील रविवर्मा कुमार ने कहा कि, सरकार अकेले हिजाब को क्यों मुद्दा बना रही है। चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को स्कूल से बाहर नहीं भेजा जाता है।
वकील ने दलील दी कि, शासन की ओर से दिए गए आदेश में किसी अन्य धार्मिक चिन्ह पर विचार नहीं किया गया है। सिर्फ हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके धर्म के कारण नहीं है? मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है।
दक्षिण अफ्रीका की अदालत का भी कल दिया था हवाला
बता दें कि बीते दिन सुनवाई के दौरान छात्राओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने अदालत के सामने दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत के फैसले का जिक्र किया था। इसमें मुद्दा यह था कि क्या दक्षिण भारत से संबंध रखने वाली एक हिंदू लड़की क्या स्कूल में नाक का आभूषण (नोज रिंग) पहन सकती है।
दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर ऐसे छात्र-छात्राएं और हैं जो अपने धर्म या संस्कृति को व्यक्त करने से डर रहे हैं तो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
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