महानायिका रानी अवंती बाई ने अपने साहस से आजादी में भी दिया योगदान
साथी जनशिक्षण संस्थान द्वारा नर्मदा कॉलेज में आयोजित किया गया नर्मदारंगम नाट्य महोत्सव
महानायिका रानी अवंती बाई ने अपने साहस से आजादी में भी दिया योगदान
नर्मदापुरम-(गेस्ट राइटर- कमलेश सक्सेना, वरिष्ठ निर्देशक)
नर्मदारंगम 2022 में आज सात दिवसीय नाटक नाटक समारोह शुरू हुआ है। वह स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित महानायकों की भूमिकाओं को लेकर सात दिवसीय नाट्य समारोह आयोजित है । आज की पहली प्रस्तुति महानायिका रानी अवंती बाई के जीवन पर केंद्रित उनके संघर्ष आजादी में उनका योगदान 1857 में उनकी भूमिका को इंगित करते हुए प्रसिद्ध नाटक निर्देशक संजय गर्ग द्वारा नर्मदारंगम में अपनी प्रथम प्रस्तुति दर्शकों के बीच में लगभग 30 कलाकारों के साथ प्रस्तुत की है नाटक के निर्देशक एवं लेखक संजय गर्ग विगत 20 वर्षों से नाटक आंदोलन से जुड़े हुए हैं जबलपुर की विभिन्न संस्थाओं के साथ नाट्यकर्म करते हुए अपनी एक पहचान बनाए हुए हैं गर्ग ने अपनी एक नाट्य संस्था नाट्य लोक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था जबलपुर स्थापित करते हुए अपने लगभग 30 कलाकारों के साथ नर्मदापुरम की इस पावन नगरी में बुंदेलखंडी इतिहास के साथ अपनी प्रस्तुति दी है। बुंदेलखंडी गायन के रंगों से सजा हुआ यह नाटक दर्शकों में कॉफी रोचकता पैदा कर रहा है नाटक इतना कसा हुआ है कि सभी दर्शक उत्साह से भाव विभोर हो रहे हैं। संजय गर्ग की विशेषता यह रही है वह हमेशा लोक फॉर्म को अपने नाटकों में रखते हैं लोक संगीत एवं विविधता के साथ नाटक को दर्शकों के बीच में रखते हैं। प्रस्तुत नाटक में उन्होंने 1857 के आसपास की विभिन्न घटनाओं को जिस तरह एक सूत्र में पिरोया है वह अपने आप में उनकी पैनी नजरिया का महत्वपूर्ण बिंदु है।1857 में मंडला के आसपास रामगढ़ गोगरी बिछिया से अंग्रेजों को खदेड़ कर रानी अवंती बाई ने जिस तरह अंग्रेजों को लोहे के चने चबाना वह एक निर्देशक की कल्पनाशीलता इस प्रस्तुति में दिखाता है । दर्शकों को इस इतिहास से निश्चित यह प्रस्तुति उस समय के संघर्ष को दर्शाती है प्रस्तुति निश्चित ही सराहनीय है।
ऐसी रही नाटक की पटकथा
निर्देशकीय यह नाटक 1857 के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने – वाली पहली महिला वीरांगना रामगढ़ की रानी अवंती बाई के संघर्ष और शहादत की दास्ता है। वीरांगना अवंती बाई ने अंग्रेजों से खुलकर लोहा लिया। रामगढ़ और राजाओं, जमींदारों, मालगुजारों और गढ़ पुरवा के राजा शंकरशाह के साथ मिलकर मध्य भारत के मंडला, रामगढ़, घुघरी बिछिया से अंग्रेजों को खदेड़ बाहर किया था। रानी ने 20 मार्च 1858 को वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुसरण करते हुए स्वयं को कटार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया। नाटक का उद्देश्य भावी पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी देना तथा शहीदों के प्रति सम्मान पैदा करना है।
नाटक का कथासार- स्वतंत्रता पूर्व मप्र में मंडला के निकट एक रियासत रामगढ़ थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर केन्द्रित इस नाटक में रानी अवंती बाई लोधी का प्रजा के प्रति समर्पण, साहस के साथ अंग्रेजों से लोहा लेना, युद्ध भूमि पर 2 ममतामई रूप और अंत में मातृभूमि के चरणों में रानी दुर्गावती की तरह अपने प्राण न्यौछावर करने का चित्रण है। रानी ने अंग्रेजों से 9 माह संघर्ष किया 6 प्रमुख युद्ध लड़े जिनमें 5 युद्धों में अंग्रेजों को धूल चटाई। छठवें युद्ध में स्वत: प्राणोत्सर्ग कर स्वतंत्रता संग्राम में पूर्णाहुति दी। मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड और गॉड़ आदिवासी क्षेत्र मंडला के पारम्परिक गीत, नृत्य के साथ लोक नाट्य स्वांग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शहीदों के प्रति सम्मान व उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
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