सुनने में बड़ा अजीब लगता हो पर है पूरी तरह सच। स्टेशन पर चल रहे रिनोवेशन ने यहां तैनात जीआरपी के साथ आरपीएफ की टेंशन बढ़ा दी है। किसी भी तरह की वारदात होने पर आरोपी का सुराग तलाशने का सहारा कहे जाने वाले सीसीटीवी कैमरे खुद असहाय हैं। शराबी/उत्पाती हो या संदिग्ध, इन सबको संभालने का काम जीआरपी/आरपीएफ तो कर रही हैं पर किसी बड़ी वारदात की आशंका से कोई चिंतित नहीं है। अस्थाई बुकिंग विंडो से लेकर प्लेटफार्म एक हो या दो, प्रतीक्षालय हो या फिर प्लेट फार्म के आगे-पीछे के रास्ते, कहीं भी कोई आकर वारदात कर जाए तो फिलहाल उसका फुटेज तो आने से रहा।
सूत्रों के अनुसार प्लेटफार्म पर लगे तीस सीसीटीवी कैमरे बंद पड़े हैं। स्टेशन के इर्दगिर्द एक कैमरा दूर खुमाराम की प्रतिमा के पास जरूर है। बाकी अस्थाई बुकिंग विण्डो से लेकर पूरे स्टेशन में अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यानी पूरे स्टेशन पर नजर रखने वालों में जीआरपी-आरपीएफ के गिने-चुने जवान शामिल है। इसको भी खुशनसीबी कहें कि इतने दिनों में ऐसी कोई वारदात/घटना नहीं हुई जिसके चलते सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जरुरत पड़ी हो। अब केवल सीसीटीवी को लोग देख रहे हैं, कैमरा किसी को नहीं देख रहा। वो दिखावटी बन गया। राजपूत कॉलोनी निवासी लुम्बाराम जाट का कहना है कि सुविधा-सुरक्षा में इस तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए। अस्थाई ही सही सिस्टम चालू किए जाएं। इनके बंद होन ेसे अपराधी कभी भी वारदात कर सकते हैं। चंदा मीना हो या देविका सोनी, राजेश हो या दामोदर। सबका कहना है कि यह लापरवाही है।
आरपीएफ चौकी में था सिस्टम सूत्र बताते हैं कि सात-आठ माह पहले तक सीसीटीवी कैमरों का पूरा सिस्टम आरपीएफ चौकी में ऑपरेट होता था। तोडफ़ोड़ के बाद काम चला तो इसे भी साइड में कर दिया। ना स्टेशन प्रबंधन के किसी कमरे में इसको ऑपरेट करने की जरुरत समझी गई ना ही इसकी अस्थाई व्यवस्था की गई। असल बात यह कि जिम्मेदारों ने इनकी अहमियत को ही नजरअंदाज कर दिया। खास बात यह है कि इस दौरान लोकसभा चुनाव भी हुए और राजनीतिक सभाएं तक स्टेशन परिसर में हुई पर किसी ने इस पर गौर ही नहीं फरमाया।
बीस हजार से अधिक…परेशानी तो है नागौर स्टेशन पर रोजाना औसतन बीस हजार लोग आते-जाते हैं। वैसे यात्री भार करीब दस हजार का है, लेकिन इन्हें छोडऩे के साथ लेने आने वालों के अलावा आसपास की कॉलोनी के लोग भी यहां से गुजरते हैं। तकरीबन दो दर्जन ट्रेन का आना जाना है। कई बार मालगाड़ी का लम्बा ठहराव भी होता है। ऐसे में कम से कम सीसीटीवी कैमरे तो चालू रखे जा सकते थे। इसके लिए स्टेशन के वर्तमान कक्ष में से कोई काम में लिया जा सकता था। रोजाना बीस हजार यानी करीब छह लाख हर माह लोग यहां आते-जाते हैं और इनकी सुरक्षा पर इतनी बड़ी खामी को नजरअंदाज किया जा रहा है।
ऐसी-ऐसी वारदात… करीब दो साल पहले टिकट लेते समय एक वृद्धा के गले से सोने की चेन लेकर तीन महिलाएं फरार हुईं, बाद में सीसीटीवी फुटेज के जरिए इन महिलाओं को पकड़ा गया। कई बार ऐसी स्थितियां आई जब सीसीटीवी फुटेज के जरिए लोगों की पहचान हो पाई।खतरे बड़े-बड़े-कई बार बंदियों को पेशी पर बाहर की पुलिस ट्रेन के माध्यम से नागौर आती और ले जाती है। ऐसे में कोई कैदी भागने की कोशिश करे या फिर उसके साथ छुड़ाने की, बाद में पुलिस को साक्ष्य क्या मिलेंगे-इन दिनों रेलवे पटरी पर दुर्घटना के लिहाज से कोई कूकर/लकड़ी जैसी वस्तु रखी जा रही है। ऐसे ही संदिग्ध हो सकता है कि स्टेशन/प्लेटफार्म के आसपास ही ऐसी हरकत कर दें।
इनका कहना स्टेशन पर बिल्डिंग बनने का कार्य चल रहा है। यह सिस्टम आरपीएफ चौकी पर था, अब कुछ समय में इसे चालू किया जाएगा। फिलहाल तो सभी सीसीटीवी कैमरे बंद हैं। वैसे सुरक्षा व्यवस्था पूरी है।
-रामसिंह, स्टेशन अधीक्षक नागौर …………………………………………………. स्टेशन पर कार्य चल रहा है, ऐसे में यह परेशानी है। हालांकि सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, अलर्ट होकर स्टेशन के इर्दगिर्द ड्यूटी दे रहे हैं।
-रमेश चौधरी, प्रभारी आरपीएफ चौकी ……………………………………………………… सीसीटीवी कैमरे बंद होने से वैसे तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा पर कोई अनहोनी घटना/वारदात होने के बाद फुटेज मिलने से काम आसान हो जाता है। जीआरपी/आरपीएफ के पास सीमित स्टाफ है पर ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं।
-रामेश्वरलाल रहाड़, प्रभारी जीआरपी चौकी, नागौर।