माता के त्रिकोण दर्शन व परिक्रमा का विशेष महात्म्य पुराणों में किया गया है। ऋषि-मुनियों के लिए सिद्धपीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है। देवासुर संग्राम के दौरान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने माता के दरबार में तपस्या कर वरदान मांगा और विजय श्री प्रपात की। यूं तो माँ विंध्यवासिनी धाम में हर दिन खास होता है, लेकिन नवरात्र में इसकी महत्ता बढ़ जाती है। यहां माँ कि पूजा प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी त्रितियम चन्द्रघन्तेति कूश्मान्देती चतुर्थकम, पंचम स्कंद्मंतेती षष्ठं कात्यायनीति च सप्तमं कल्रात्रेती महागौरीति चाष्टमं नवमं सिधिदात्री च नव दुर्ग प्रकीर्तिता के रूप की जाती है।
मान्यता है की नवरात्र के दिनों में माँ धरती के निकट आ जाती हैं और अपने भक्तों को सुख शान्ति प्रदान करती है। धर्म नगरी काशी प्रयाग के मध्य स्थित विन्ध्याचल धाम आदि काल से देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। ट्रेन, सड़क व हवाई मार्ग के जरीए यहां पहुंचा जा सकता है। वहीं नवरात्र के समय विन्ध्याचल में सभी ट्रेनों का ठहराव होता है। रेलवे स्टेशन व रोडवेज बस अड्डा मंदिर के कुछ ही दूरी पर है। जो लोग हवाई यात्रा के जरिए यहां पहुंचना चाहते है वे वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डा पर उतर कर सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर की दूरी तय कर विन्ध्याचल पहुंच सकते है।