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Patrika Exclusive: यहां आलू के हाल खराब होने से किसान परेशान स्वयं उत्पन्न हुई थी शिव पिंडी औघड़नाथ मंदिर की पूरे भारत वर्ष में अपनी अलग मान्यता है। इतिहासकारों की मानें तो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1857 में इस सिद्धपीठ मंदिर की स्थापना भारतीय सैनिकों ने की थी आैर यहां रोजाना पूजा करने आते थे, इसीलिए इसका नाम काली पल्टन मंदिर पड़ा था। यहीं परिसर में ही शिवलिंग स्वतः उत्पन्न हुए, अब यह
आैघड़नाथ मंदिर के जाना जाता है।
काफी छोटी है पिंडी भूमि से उत्पन्न इस सिद्धपीठ शिव पिंडी का आकार काफी छोटा है। मंदिर के पुजारी श्रीधर त्रिपाठी के अनुसार पहले कुछ वर्षों तक पिंडी को छूने की मनाही थी। लेकिन श्रद्वालुओं की हठधर्मिता के कारण यह व्यवस्था अधिक दिन तक नहीं चल पाई।
लौह तत्व बिगाड़ रहा सिद्धपीठ पिंडी भूगोल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. कंचन सिंह ने बताया कि पिंडी खराब होने का कारण पानी में लौह तत्व की अधिकता है। मेरठ और इसके आसपास का पानी में तेजी से लौह तत्व की अधिकता बढ़ रही है। इसके साथ ही पानी में लेड की मात्रा भी काफी अधिक है। पानी में लौह तत्व की अधिकता का कारण पानी का जल स्तर लगातार नीचे गिरना है। पंडित जी के अनुसार सिद्धपीठ पिंडी में प्रतिदिन कम से कम पांच सौ लोग जलाभिषेक करते हैं।
आरआे की तैयारी मंदिर प्रांगण में शीघ्र ही आरओ मशीन लगने वाली है। इसी के पानी से सिद्धपीठ पिंडी का जलाभिषेक किया जाएगा। किसी को बाहर से पानी लाकर जलाभिषेक नहीं करने दिया जाएगा। शिवरात्रि पर्व पर इसकी छूट रहेगी।